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Wednesday, January 22, 2020

Internet Shutdowns in India

पिछले कुछ सालों से भारत इंटरनेट बन्द करने में दुनियाभर के सभी देशों को पछाड़ कर शीर्ष पर पहुंच गया है। वैसे तो सरकार सभी काम धीरे धीरे ऑनलाइन कराने कि सोच रही है लेकिन शायद वो ये भूल रहे है कि ऑनलाइन काम कराने के लिए इंटरनेट की जरूरत पड़ती है। थोड़े थोड़े दिनों में देश के किसी ना किसी कोने में इंटरनेट बन्द कर दिया जाता है जिस से आम नागरिकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

                              फ़ोटो स्रोत: एफआईआई

मै यहां कुछ डाटा बताना चाहूंगा जिस से पता चलेगा कि इंटरनेट बन्द करने के मामले में हम कितने ज्यादा आगे है:
  1. भारत में 2012 से 2019 तक 374 बार इंटरनेट बन्द किया गया है जिसमें 106 बार तो अकेले 2019 में ही किया गया है।
  2. भारत में 2019 में 4,196 घंटे तक इंटरनेट बन्द किया गया है जिस से 1.3 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
  3. 2012 से 2017 के बीच भारत में 16,315 घंटे तक इंटरनेट बन्द किया गया था जिस से 3.04 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था।
  4. कश्मीर में 4 अगस्त से अभी तक इंटरनेट बन्द है, ये किसी भी देश में सबसे लंबी अवधि तक किया जाने वाले इंटरनेट बन्द है।
  5. 2016 से 2018 के बीच भारत ने 154 बार इंटरनेट बन्द किया था।


                              फ़ोटो स्रोत: फोर्ब्स



इन सब आंकड़ों से कहा जा सकता है कि भारत इंटरनेट बन्द करने के मामले में दुनिया में अपनी छाप छोड़ रहा है। भारत इंटरनेट बन्द करने के मामले में एक नम्बर पे बना हुए है जो की भारत के लिए मेरे हिसाब से शर्म की बात है।


डिजिटल इंडिया बोलकर आप भारत में सिर्फ़ इंटरनेट बन्द कराने में व्यस्त हो, ऐसे कैसे मेरा भारत डिजिटल भारत बनेगा। आज कल हर काम इंटरनेट से होता है लेकिन जब इंटरनेट ही नहीं रहेगा तो काम कैसे होगा, इस से आम आदमी को बहुत तकलीफ़ का सामना करना पड़ता है।


किसी भी परीक्षा का ऑनलाइन फॉर्म भरना, कैश लैस इकोनॉमी की तरफ़ बढ़ना, जीएसटी रिटर्न भरना, बैंकिंग के काम करना और भी कई काम है जो सिर्फ़ इंटरनेट के माध्यम से होते है लेकिन इसके बन्द कर देने से ये सब नहीं हो पाते है। उद्योग धंधे ठप्प पड़ जाते है।




      फ़ोटो स्रोत: स्क्रॉल (इन राज्यो में इंटरनेट बन्द किए)


विस्तृत जानकारी के लिए आप नीचे दिए लिंक में पढ़ सकते है:-

Wednesday, December 4, 2019

How to Revive Economic Growth in India

Leadership is not about you; it’s about investing in the growth of others.
      -Ken Blanchard


किसी भी चीज़ को ठीक करने से पहले हमे ये पता लगाना होता है कि गलती कहाँ हुई है और फ़िर उस गलती को मानना भी होगा, अगर हम गलती ही नहीं मानेंगे तो कैसे हम चीज़े ठीक करेंगे। इसी प्रकार भारत की अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने से पहले भारत सरकार को ये मानना ही होगा की अभी वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी से नीचे उतरी हुई है, तभी इसे वापस पटरी पर लाया जा सकता है। वित्तीय वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही के आंखड़ो के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था 4.5% की ग्रोथ रेट से आगे बढ़ रही है जो की पिछले 6 सालों में सबसे कम है।

भारतीय अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिये मांग (Demand) में आ रही कमी को दूर करना होगा और ये काम सरकार कई तरीको से कर सकती है, इसका पहला तरीका लोगों को रोज़गार मुहैया कराने का होगा। 2017-18 वित्तीय वर्ष में भारत में पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी दर्ज की गई है। अगर लोगों के पास रोज़गार होगा तो वो पैसे ख़र्च करेंगे और पैसे ख़र्च करेंगे तो मांग बढ़ेगी, जिसकी भारतीय अर्थव्यवस्था को सख़्त जरुरत है। जब लोगों के पास रोज़गार नहीं होता है तो वो ख़र्चा करने से डरते है और उनको जो भी खरीदना होता है उसे वो आगे के लिये टाल देते है। मांग में आ रही कमी को किसानो को उनकी फ़सल का उचित दाम दे के भी किया जा सकता है। स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार किसानो को उनकी फ़सल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price, MSP) मिलना चाहिये।


बैंको में बढ़ रहे लगातार NPA (Non Performing Asset, Bad Loan) की वजह से बैंको ने अब लोन देना थोड़ा मुश्किल कर दिया है, हालांकि बैंक बड़े-बड़े उद्योगपतियों को तो लोन दे रहे है लेकिन छोटे और मध्यम उद्योगपतियों को लोन लेने में काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है जिसकी वजह से उन्हें व्यापर करने में दिक्कत आ रही है। इसलिये सरकार को बैंको को वापस विश्वाश में लेना होगा की वो छोटे कारोबारियों को भी पैसा दे क्यूंकि ये लोग ही ग्रामीण भारत में ज़्यादा रोज़गार देते है और इनका NPA बड़े कारोबारियों की तुलना में कम होता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी से नीचे उतारने के सबसे बड़े कारण एक तो नोटबंदी है और जिस प्रकार से GST (Goods & Services Tax, वस्तु और सेवा कर) लागू किया गया था, वो इसका दूसरा कारण है। अब नोटबंदी का तो कुछ नहीं किया जा सकता, जो हो गया वो हो गया लेकिन GST को सुधारा जा सकता है। आये दिन GST के नियमो में कुछ फ़ेरबदल किया जाता है, अभी तक सरकार एक स्थिर GST नहीं बना सकी, लोग अभी तक इसके कायदे कानून ही नहीं समझ पा रहे है, खासकर के छोटे और मध्यम वर्ग के व्यापारी। लोग GST भरते है लेकिन फ़िर उनको रिफंड समय पे नहीं मिलता, जिसके चलते वो सही से व्यापर नहीं कर पाते है। सरकार को सरल और स्थिर GST बनाना होगा जिसमे सभी को आसानी हो।


इसमें बिल्कुल भी शक नहीं है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी दुनिया में लोकप्रिय है लेकिन क्या उन्होंने इस लोकप्रियता का फ़ायदा भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने में लगाया है? इसका ज़वाब है नहीं क्योंकि उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद, अगर 2018-19 को छोड़ दिया जाये तो निर्यात (Export) कम ही हुआ है। भारत ने 2013-14 में 314.4 बिलियन डॉलर निर्यात किया था जो 2017-18 में घटकर 303.3 बिलियन डॉलर हो गया था।  इसलिये भारतीय प्रधानमंत्री को विदेशी दौरों पे निर्यात को बढ़ावा देने के प्रयास करने होंगे जिससे भारतीय कारोबारियों को फ़ायदा हो और अगर इनको फ़ायदा होगा थो उससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी फ़ायदा होगा।

हमारे देश में ही कई ऐसे अर्थशास्त्री है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पे लाने में सरकार की मदद के सकते है लेकिन शर्त ये है कि भारत सरकार को उनकी सुननी पड़ेगी लेकिन वर्तमान सरकार तो किसी की सलाह लेने में विश्वाश ही नहीं रखती। अमर्त्य सेन और अभिजीत बनर्जी दोनों को अर्थशास्त्र में नोबेल पुरूस्कार मिला है, वही मनमोहन सिंह जिनके बारे में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ने कहा था की जब मनमोहन सिंह बोलते है तो पूरी दुनिया इन्हे ध्यान से सुनती है, रघुराम राजन जिन्होंने अमेरिका में आयी वित्तीय मंदी (Financial Crisis 2008) के बारे में पहले ही चेता दिया था और भी कई ऐसे बड़े नाम है लेकिन सवाल ये है कि इतने नामी अर्थशास्त्रियों की भी क्यों नहीं सुन रही है भारत सरकार।

जानिये: क्या भारतीय अर्थव्यवस्था वाक़ई बुरे दौर से गुज़र रही है ?

Before we can fix anything, we have to find out where the mistake has been made and then we will have to accept that mistake, if we do not accept the mistake then how will we fix it. Similarly, before bringing the Indian economy back on track, the Government of India will have to agree that at present the Indian economy is derailed, only then it can be brought back on track. According to the data of the second quarter of the financial year 2019-20, the Indian economy is growing at a growth rate of 4.5%, which is the lowest in the last 6 years.

In order to get the Indian economy back on track, the shortfall in Demand has to be overcome and the government can do this in many ways, the first way will be to provide employment to the people. In the 2017-18 financial year, India has recorded the highest unemployment in the last 45 years. If people have employment then they will spend money and if they spend money then demand will increase, which the Indian economy desperately needs. When people do not have employment, they are afraid of spending and they postpone whatever they have to buy. The reduction in demand can also be done by giving the farmers a reasonable price for their crops. According to the Swaminathan Commission report, farmers should get the Minimum Support Price (MSP).

Due to the constantly increasing NPA (Non Performing Asset, Bad Loan) in banks, banks have now made it a bit difficult to give loans, although banks are giving loans to big industrialists but small and medium industrialists are not getting enough loans. They are facing difficulties due to which they are facing difficulty in doing business. That is why the government will have to bring back the trust in banks that they also give money to small traders because these people give more employment in rural India and their NPA is less than that of big businessmen.

Demonetisation is one of the biggest reasons for derailing the Indian economy and the way GST (Goods & Services Tax, Goods and Services Tax) was implemented is another reason. Now nothing can be done about demonetisation, what happened is done but GST can be rectified. People are not yet able to understand its rules and regulations, especially the small and middle traders. People fill GST but then they do not get refund on time, due to which they are not able to trade properly. The government will have to create a simple and stable GST in which everyone can get ease.

There is absolutely no doubt that Indian Prime Minister Narendra Modi is popular all over the world, but has he used this popularity to improve the Indian economy? The answer is no, because after he became the Prime Minister, the export has reduced (except 2018-19). India exported $ 314.4 billion in 2013-14, which was reduced to $ 303.3 billion in 2017-18. Therefore, the Indian Prime Minister will have to make efforts to promote exports on foreign tours, which will benefit the Indian businessmen and if they benefit, it will also benefit the Indian economy.

There are many economists in our country who can help the government to get the Indian economy back on track, but the condition is that the Indian government will have to listen to them, but the present government does not believe in taking advice from anyone. Amartya Sen and Abhijeet Banerjee have both received Nobel Prizes in Economics, Manmohan Singh whom the former President of America had said that when Manmohan Singh speaks, the whole world listens carefully to him, Raghuram Rajan who warned America about the financial crisis three years ago. There are many such big names but the question is that why is Indian government not listening even such well-known economists.


References:

Sunday, October 27, 2019

Crisis in Indian Economy: Truth vs Hype

People stop buying things, and that is how you turn a slowdown into a recession.
-Janet Yellen

पिछले काफी दिनों से ये बहस चल रही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था सही पटरी पर चल रही है या नहीं। कुछ लोग बोल रहे है कि सब ठीक है और कुछ बोल रहे है कि कुछ भी ठीक नहीं है। यहाँ तक कि हमारे प्रधानमंत्री ने भी अमेरिका के ह्यूस्टन में हुये हाउदी मोदी कार्यक्रम में कहा था कि भारत में सब ठीक है लेकिन अभी कुछ दिनों पहले ही अर्थव्यवस्था में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले भारतीय अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत बहुत बुरी है। अब आगे हम यही जानने की कोशिश करेंगे की वाक़ई में सब ठीक है या नहीं। 


NSSO (राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय) भारत में जीडीपी के बारे में बताता है और इसके मुताबिक 2019-20 की पहली तिमाही (जून तिमाही) में 5% जीडीपी ग्रोथ रेट है जो कि 2018-19 की जून तिमाही से 3% कम है, 2018-19 की जून तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 8% थी। बहुत से स्वतंत्र संस्थाओ को लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी बुरे दौर से गुज़र रही है, इसीलिये उन्होंने भारत की अनुमानित जीडीपी ग्रोथ रेट में कमी की है। RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) ने 2019-20 वित्तीय वर्ष के लिये अनुमानित जीडीपी ग्रोथ रेट 6.9% से घटाकर 6.1% कर दी है। World Bank ने भी 2019-20 के लिये अनुमानित जीडीपी ग्रोथ रेट 7.5% से घटाकर 6% कर दी है। IMF (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने भी 2019-20 के लिये अनुमानित जीडीपी ग्रोथ रेट 7% से घटाकर 6.1% कर दी है। ADB (एशियाई विकास बैंक) ने भी 2019-20 के लिये अनुमानित जीडीपी ग्रोथ रेट 7.2% से घटाकर 6.5% कर दी है। इन सभी आंखड़ो से ये तो स्पष्ट होता है कि भारत की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुज़र रही है।




तेज़ी से आगे बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को एक दम से ऐसा क्या हो गया कि अब ये मंदी के दौर से गुज़र रही रही है, इसका पहला जवाब 'कुल माँग' (Aggregate Demand) में कमी आना है और माँग में कमी आने के कई कारण है उनमे से पहला कारण तो नोटबंदी है। एक दम से 86% मुद्रा (करेंसी, 500-1000 के नोट) को चलन से बाहर कर देने से अर्थव्यवस्था को झटका लगा और सबसे बड़ा झटका असंगठित क्षेत्र (किसान, मज़दूर, छोटे व्यापारी, सब्जी बेचने वाले, इत्यादि) को लगा जो कि भारत की जीडीपी में 45% का योगदान देता है और 90-95% लोग यहाँ काम करते है। असंगठित क्षेत्र में ज्यादातर धंधे नगद में होते है, और नगद में पैसा ना होने की वज़ह से व्यापारियों को धंधा चलाने में मुश्किलें आने लगी। नोटबंदी की वज़ह से लोगो की आय कम हो गई, क्यूंकि लोगो के पास पैसे नहीं थे और पैसे नहीं होंगे तो ख़र्चा भी नहीं होगा और ख़र्चा नहीं होगा तो माँग में कमी होनी ही थी और इस से फिर लोगो ने नौकरियाँ भी गवां दी। नोटबंदी के बाद जिस तरीके से GST (वस्तु एवं सेवा कर) लागू किया उसने छोटे कारोबारियों की कमर तोड़ दी क्यूंकि GST को इतना जटिल बनाया गया कि लोग इसे समझ ही नहीं पाये, तो वो खुद से तो GST भर ही नहीं पा रहे थे, इसके लिये उनको CA (Chartered Accountant) के पास जाना पड़ता था और फ़िर GST भर देने के बाद उनको सही समय पे रिफंड भी नहीं मिलता था जिसकी वज़ह से व्यापर करने में दिक्कत आने लगी।

बेरोजगारी भी एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से माँग में कमी आयी है, NSSO के डाटा के मुताबिक 2017-18 में पिछले 45 सालो में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर्ज़ की गयी है। बेरोजगारी बढ़ने की वज़ह से लोग घर पे बैठे हुये है, उनके पास काम करने को कुछ भी नहीं है जिसकी वज़ह से वो खर्चा कर नहीं सकते और फ़िर इसकी वज़ह से बाज़ार में ख़पत (Consumption) कम हो रहा है। निजी खपत' (Private Consumption) भारत की जीडीपी में 55-60% का योगदान देता है जिसमे भारी गिरावट दर्ज की गयी है। निजी अंतिम खपत व्यय (Private Final Consumption Expenditure, PFCE) 2019-20 की पहली तिमाही में 3.14% है जो की पिछली 17 तिमाहियों में सबसे कम दर्ज किया गया है, इस से साफ पता चलता है की भारत में माँग (Demand) की कमी आयी है। निवेश भी देश की जीडीपी को चलाने में अहम भूमिका निभाता है और इसे सकल स्थायी पूंजी निर्माण (Gross Fixed Capital Formation, GFCF) से मापा जा सकता है जो कि 2011 में 34.3% से गिरकर 2018 में 28.8% हो गया है और निजी क्षेत्र में भी GFCF, 2011 में 26.9% से गिरकर 2018 में 21.4% हो गया है।




अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाये रखने के लिये सरकार का खर्च करते रहना भी बहुत जरूरी होता है जो की 2010-11 में जीडीपी का 15.4% से घटकर 2018-19 में जीडीपी का 12.2% हो गया है और सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार जो नये निवेश करती है उनमे भी कमी आयी है जबकि सरकार ने बजट प्रस्तुत करते हुये कहा था की वो 100 लाख करोड़ रूपए खर्च करेंगे लेकिन इसका अनुसरण करना शायद सरकार बाद में भूल गई।

भारतीय अर्थव्यवस्था का नीचे गिरने का कारण बैंको में लगातार बढ़ते हुये फ्रॉड भी है, जिससे लोगो का विश्वाश बैंकों पे कम होता जा रहा है। अकेले 2018-19 वित्तीय वर्ष में 71,500 करोड़ रूपए के बैंक में फ्रॉड हुये है। जीडीपी को मापने के 4 सबसे बड़े सूचक है- खपत, निवेश, सरकारी खर्च और निर्यात और अभी चारो सूचक गिरे हुये है, इनको ऊप्पर उठाने लिये भारत सरकार को ऐसे कदम उठाने होंगे जिनसे इनको मजबूती मिले। लेकिन कुछ भी कदम उठाने से पहले सरकार को ये मानना होगा की भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति अभी सही नहीं है क्यूंकि जब तक आप मानोगे ही नहीं तब तक आप कैसे सही कदम उठा सकते हो।



In these days, there has been a debate whether the Indian economy is on track or not. Some people are saying that everything is fine and some are saying that everything is not fine. Even our Prime Minister said in the 'Howdy Modi' event held in Houston, USA that everything is fine in India but just a few days ago, the Indian Economist Abhijit Banerjee, who won the Nobel Prize in the economy, feels that the condition of Indian economy is very bad. Now, we will try to discuss whether everything is right or not.

NSSO (National Sample Survey Organisation) tells about the GDP data in India and according to it, the first quarter (June quarter) of 2019-20 financial year (FY) has 5% GDP growth rate which is 3% less than the June quarter of 2018-19 FY. The GDP growth rate in the June quarter of 2018-19 FY was 8%. Many independent organisation suggested that Indian economy is going through a bad phase, therefore they cuts the projected GDP growth rate for the next financial year. The Reserve Bank of India has reduced the projected GDP growth rate from 6.9% to 6.1% for the 2019-20 financial year. The World Bank has also reduced the projected GDP growth rate from 7.5% to 6% for 2019-20. The IMF (International Monetary Fund) has also reduced the projected GDP growth rate from 7% to 6.1% for 2019-20. The ADB (Asian Development Bank) has also reduced the projected GDP growth rate from 7.2% to 6.5% for 2019-20. It is clear from these data that Indian economy is going through a bad phase.

Fastest growing economy is now going through a recession and one of the reason for it is a reduction in aggregate demand. There are many reasons for reduction in demand but 'demonetisation' is the first reason among them. With 86% currency out of the circulation, the economy suffered a lot and the biggest setback came in the unorganized sector (farmers, labourers, small traders, vegetable sellers, etc.) which accounted for 45% of India's GDP and 90-95% of the people work here. Most of the businesses in the unorganized sector are running in cash, and due to the lack of money in cash, merchants face difficulties in running the business. Due to the demonetisation, the income of the people was reduced because people had no money for expense and if the expenditure was not there then there was a reduction in demand and people also lost their jobs. Then the way in which GST (Goods and Services Tax) was implemented after demonetisation, it hurt the small businessmen badly because GST was so complicated that people could not understand it, they could not even fill GST by themselves. For this, they had to go to the CA (Chartered Accountant) and then after filling the GST, they did not get the refund on the right time, due to which there was a problem in running the business.


Unemployment is also a reason due to which demand has come down, according to NSSO data, unemployment is highest in 2017-18 FY for the last 45 years. Due to the increase in unemployment people are sitting at home, they have nothing to work which resulted in the decrease in the consumption in the market. Private Consumption contributes 55–60% to India's GDP, which has witnessed a steep decline. Private Final Consumption Expenditure, PFCE is 3.14% in the first quarter of 2019-20 which is the lowest recorded in the last 17 quarters, this clearly shows a shortage in demand in India. Investment also plays an important role in driving the GDP of the country and can be measured by Gross Fixed Capital Formation (GFCF) which has fallen from 34.3% in 2011 to 28.8% in 2018 and in private sector, GFCF has fallen from 26.9% in 2011 to 21.4% in 2018.


Government expenditure is also very important key to running an economy smoothly which has come down from 15.4% of GDP in 2010-11 to 12.2% of GDP in 2018-19 and the fresh investment projects by the government in the public sector also came down whereas government said in the budget that they will spend 100 lakh crore rupees in the infrastructure but the government may have forgotten to follow it later.


The reason for the downfall of the Indian economy is also the increasing frauds in banks, due to which the people have less faith in banks. In the 2018-19 financial year alone, bank fraud worth Rs 71,500 crore. The 4 biggest indicators of measuring GDP are- consumption, investment, government expenditure and exports and now all four indicators are falling, the Government of India will have to take steps to strengthen them. But before taking any action, the government will have to accept that the Indian economy is not well right now, as long as you don't accept then how can you take the right steps.

References:

Thursday, October 10, 2019

Article 370: Bridge or Barrier

“Most leaders would agree that they’d be better off having an average strategy with superb execution than a superb strategy with poor execution.” 
- Stephen Covey
5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने आर्टिकल 370 को निष्क्रिय कर दिया था और तब से ही यही विवाद चल रहा है कि आर्टिकल 370 भारत के लिये कश्मीर को बांधे रखने के लिये पुल था या अवरोधक। एक पक्ष बोल रहा है कि 370 हटा के हमने कश्मीर को भारत में मिला लिया और दूसरा पक्ष कहता है कि 370 हटा के हमने भारत का धड़ भारत से अलग कर दिया। मैं दोनों पक्षो से कहना चाहूंगा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और ये बात 370 के जरिये ही कही गई है क्यूंकि जम्मू- कश्मीर के सविंधान में ही लिखा गया था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हैं और इसीलिये शायद 370 को हटाया नही गया है बल्कि निष्क्रिय कर दिया गया है और वो भी 370 का ही प्रयोग करके।

भारतीय सविंधान के सिर्फ़ 2 ही आर्टिकल जम्मू कश्मीर मे लागू थे, आर्टिकल 1 और आर्टिकल 370। आर्टिकल 1 के तहत भारत राज्यों का यूनियन (संघ) है, इसके अंतर्गत ही जम्मू कश्मीर राज्य भारत का अहम हिस्सा बना। आर्टिकल 370 के तहत भारतीय संसद को जम्मू कश्मीर राज्य में कानून लागू करने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होती थी - रक्षा, विदेशी मामलों, वित्त और संचार के मामलों को छोड़कर। इसका मतलब है कि अगर संसद को कश्मीर मे कोई कानून लागू करना है या भारत के सविंधान का कोई भी आर्टिकल संशोधित करके कश्मीर मे लागू करना होता तो वहाँ की सरकार की मंजूरी जरूरी होती थी। इसी वजह से आर्टिकल 370 एक खास आर्टिकल बन जाता है। लेकिन समय-समय पे आर्टिकल 370 को कमज़ोर करने की कोशिशें की गई है जो कामयाब भी रही है। भारत के सविंधान के 395 अर्टिकलो में से 260 आर्टिकल तो वहाँ पे 370 का ही प्रयोग करके लागू किये गये है। हम आर्टिकल 370 के बारे मे ऐसा भी कह सकते है कि ये भारत के सविंधान को जम्मू कश्मीर के सविंधान से जोड़े रखने का काम करता है। आर्टिकल 370 को लोकतांत्रिक तरीके से लगाया गया था और इसे लोकतांत्रिक तरीके से ही हटाया जाना चाहिये था, हो सकता था कि इसमें थोड़ा समय लगता लेक़िन उससे फिर कोई समस्या नही आती। आर्टिकल 370 को हटाने का लोकतांत्रिक तरीका है कि इसे राष्ट्रपति ऑर्डर के जरिये जम्मू कश्मीर की सरकार की मंजूरी ले के हटाया जा सकता था। लेकिन भारत सरकार ने ऐसा बिल्कुल भी नही किया। उन्होंने राष्ट्रपति ऑर्डर के जरिये जम्मू कश्मीर के गवर्नर की सहमती ली जो कि उचित नही था क्यूंकि गवर्नर तो खुद केंद्र सरकार के अधीन होते हैं।

बहुत से लोगो को लगता है कि कश्मीर ही एक मात्र राज्य है जिसको विशेषाधिकार प्राप्त है लेकिन ऐसा नहीं है, आर्टिकल 371 के तहत 10 अन्य राज्यों को भी विशेषाधिकार प्राप्त है, जो है नागालैंड, महाराष्ट्र, गुजरात, असम, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, सिक्किम, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और गोवा। नागालैंड मे भी किसी भी एक्ट लागू करने के लिये हमे वहाँ की विधानसभा की मंजूरी लेनी होती है। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश मे भी बाहरी व्यक्ति जाकर जमीन नहीं खरीद सकता। कुछ लोग तर्क दे रहे है कि अगर वहाँ जमीन खरीदने की इजाज़त होती तो बड़े-बड़े निवेशक वहाँ निवेश कर पायेंगे, तो उनको मै बताना चाहूँगा कि जहाँ पर नफ़रत का माहौल बना रखा हो वहाँ निवेश करने कौन जायेगा क्यूंकि सबको पहले अपनी जान प्यारी होती है। कश्मीर मे आतंकवादी गतिविधियों में भाग लेने वाले युवाओ की संख्या 2010 में 54 से घट कर 2013 में 16 हो गई थी लेकिन फिर ये संख्या 2018 में बढ़कर 191 हो गई। इन संख्याओ से यह तो तय है कि 2014 के बाद से घाटी में नफरत माहौल बनाया गया जिस से युवाओ का आतंकवाद की तरफ़ रुझान हुआ।


जब 370 को हटाया जा रहा था और कश्मीर को 2 केंद्रशासित प्रदेशो में बांटा जा रहा था तब ये तर्क दिया गया कि 370 की वजह से कश्मीर में विकास नहीं हो पा रहा है जो कि पूरी तरह से सही नहीं हैं क्यूंकि भारत के कई ऐसे प्रदेश हैं जो कश्मीर से कम विकसित है। कश्मीर प्रति व्यक्ति राज्य जीडीपी , गरीबी दर और मानव विकास सूचकांक (ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स) में भारत के अन्य प्रदेशो से आगे है तो अब ये सवाल बनता हैं कि क्या भारत सरकार अन्य प्रदेशो को भी केन्द्रशासित प्रदेशो में परिवर्तित करना छायेगी।

जब 26 नवंबर 1949 को हम अपना सविंधान अपना रहे थे तब तक हमने कश्मीर का 1/3 भाग खो दिया था, जिस पे पाकिस्तान ने अपना कब्ज़ा कर लिया था, जिसे पाकिस्तान अधीन कश्मीर (POK) कहा जाता है और इसी वजह से हम हमारे सविंधान मे ये दावा नहीं कर सकते थे कि POK भारत का हिस्सा हैं लेकिन जम्मू- कश्मीर के सविंधान की वजह से हम दावा कर सकते हैं कि POK भारत का हिस्सा हैं क्यूंकि जम्मू- कश्मीर के सविंधान (आर्टिकल 4) में लिखा है कि 15 अगस्त 1947 के दिन जिस क्षेत्र पर वहा के शासक (राजा हरि सिंह)  का अधिकार था वो भारत का अभिन्न अंग होगा और इसी वजह से हम POK पर अपना दावा पेश करते हैं लेकिन अब भारत सरकार ने इसे ही हटा दिया हैं।

अगर हमे सविंधान में कोई संसोधन करना होता है तो उसके लिये हमे 2/3 बहुमत चाहिये है दोनों सदनो में लेकिन हम कश्मीर पर आर्टिकल 370 के अंतर्गत  सिर्फ़ राष्ट्रपति ऑर्डर के ज़रिये ही संसोधन करवाया जा सकता है और अब तक ऐसे 45 राष्ट्रपति ऑर्डर जारी हो चुके है। पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिये सविंधान में 4 बार संसोधन करना पड़ा था लेकिन कश्मीर में राष्ट्रपति शासन सिर्फ़ 370 से ही लगाया जा सकता है। इसीलिये ये कहा जा सकता है कि आर्टिकल 370 कश्मीर के लिये नहीं बल्कि भारत सरकार (दिल्ली) के लिये विशेषधिकार था।

आर्टिकल 370 को धीरे-धीरे काफी हद तक तो पहले ही निष्क्रिय किया जा चूका था लेकिन अब भारत सरकार ने अब इसे पूरी तरह ही निष्किय कर दिया है और वो भी अलोकतांत्रिक ढंग से। इसे लोकतांत्रिक तरीके से भी हटाया जा सकता था, हो सकता था इसमें वक़्त लगता लेकिन कश्मीर को अभी की तरह 2 महीने तक कर्फ्यु में नहीं रखना पड़ता और अगर हम कश्मीर के साथ कश्मीरियों को भी अपनाये तो कश्मीर में भी शांति लायी जा सकती है जो कभी भी बन्दूक की दम पर नहीं लायी जा सकती। अगर आप लोगो को जबरदस्ती उनके परिवार से नहीं मिलने देंगे तो लोग आप पर क्यों विश्वास करेंगे। 2 महीने से भी ज्यादा समय हो गया लेकिन कश्मीर में अभी तक सभी प्रकार की कनेक्टिविटी (मोबाइल फ़ोन, इंटरनेट सेवा) बंद है। वैसे तो भारत सरकार बार-बार कहे जा रही है कि कश्मीर में हालात सामान्य है लेकिन अगर सब कुछ सामान्य है तो फिर ऐसी क्या जरुरत पड़ गई की 2 महीने से ज्यादा समय होने के बाद भी अभी तक वहाँ पाबंदिया लगी हुई है।


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