Wednesday, September 30, 2020

Hathras Gang Rape Case

"If you are neutral in situations of injustice you have chosen the side of the oppressor."

-Desmond Tutu

सपने देखने का हक़ सबको होता है, मैं भी सपने देखता हूँ, आप भी अपने लिए कुछ न कुछ सपने देखते ही होंगे और ठीक उसी तरह हमारे माता-पिता, भाई-बहिन भी हमारे लिए कुछ सपने देखते है और इन सपनो को सिर्फ देखते ही नहीं है बल्कि पूरा करने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते है और सपने पूरा ना होने पर हम काफी दुखी भी होते है और हमारे साथ हमारे परिवारजन भी दुखी होते है फिर हम अपने आप को समझा लेते है की अपने से कुछ गलती हो गयी होगी तो हम इस गलती को सुधार लेंगे लेकिन क्या हो की किसी ओर इंसान ने आपके सारे सपने और आपके पुरे परिवार के सपनो को अपनी हवस मिटाने के लिए तोड़ दिये हो और बुरी तरह से तोड़ दिये हो की वो अब कभी भी पुरे नहीं हो सकते चाहे आप कुछ भी कर लो। ऐसा ही एक हादसा उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के एक गाँव में एक परिवार के साथ हुआ। यहां सपनों को तोड़ा ही नहीं, मार दिया गया है।

                         इमेज क्रेडिट: टाइम्स ऑफ़ इंडिया 

14 सितम्बर को दिन में उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के एक गाँव में 19 वर्षीय दलित लड़की का सर्वण ठाकुर जाति के चार लड़को (संदीप, रामू, रवि और लवखुश) ने सामूहिक बलात्कार किया। कुछ भी आगे लिखने से पहले बता दूँ कि बलात्कार पीड़िता की पहचान बताना एक अपराध है, फिर भी कुछ चैनल, अख़बार और सोशल मीडिया बलात्कार पीड़िता का नाम और पहचान बता रही है। न्यूज़लौंडरी की खबर  मुताबिक 14 सितम्बर के दिन पीड़िता अपनी माँ और भाई के साथ खेत में चारा लेने गयी थी और इस दिन भाई कुछ काम की वजह से जल्दी घर आ जाता है तो खेत में सिर्फ पीड़िता और उसकी माँ रह जाते है। थोड़ी देर बाद खेत में काम करने के बाद माँ को पीड़िता नहीं दिखाई देती है तो वो उसे आवाज़ लगाती है और ढूंढ़ने लगती है तब पीड़िता की माँ को खेत में उसकी बेटी की चप्पलें दिखायी देती है और पास में ही किसी को घसीट के ले जाने के निशान दिखायी देते है वो निशानों की तरफ़ बढ़ती है तो देखती है की उनकी बेटी बाजरे के खेत में नग्न अवस्था में पड़ी हुई है जिसके मुँह से,  गर्दन से और योनि से खून निकल रहा था। बाद में पता चला की पीड़िता का बलात्कार किया गया और उसे पीटा गया जिसमें उसकी जुबान कट गयी थी, गर्दन की 3 हड्डियां और रीढ़ की हड्ड़ी भी टूट गयी थी।

शुरू में पीड़िता को स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया था जहां से उसे अलीगढ मेडिकल कॉलेज रेफ़र कर दिया गया था और यहां 13 दिनों तक वेंटीलेटर पर रही, फ़िर उसे 28 तारीख को सफदरजंग दिल्ली अस्पताल लाया गया जहां उसने 29 तारीख को दम तोड़ दिया। पीड़िता की मौत होने के बाद पीड़िता का शव परिजनों को नहीं दिया गया और इसलिए परिवार वालो ने अस्पताल के बाहर अपनी ही बेटी की लाश लेने के लिए धरना दिया और धरने के बीच में ही पुलिस परिवारों वालो को जबरदस्ती गाड़ी में बैठाकर पीड़िता के गाँव ले आयी जहां पुलिस वाले पीड़िता की लाश को भी ले के आये और परिवार वालो से कहा की रात में ही पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दो लेकिन परिवार वालो ने मना कर दिया उन्होंने कहा की वो सुबह ही अंतिम संस्कार करेंगे क्योंकि हिन्दू रीति रिवाज़ के मुताबिक सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार नहीं करते। लेकिन पुलिस नहीं मानी तो पीड़िता की माँ ने उनके आगे भीख मांगी, जी हाँ भीख वो भी अपनी ही बेटी को अंतिम बार अपने घर में ले जाकर देखने की, यह भी पुलिस ने नहीं माना। सुशांत सिंह राजपूत के परिवार ने सीबीआई जाँच और ईडी की जाँच की मांग की थी और उनकी मांगो को माना भी गया लेकिन इस केस में तो परिवार वाले बस अपनी बेटी को अंतिम बार देखना चाहते थे। माता-पिता को अपनी ही बेटी को अंतिम बार देखने भी नहीं दिया गया, समझ नहीं आता क्यों? क्या सिर्फ इसलिए कि यह गरीब है और दलित भी है तो इनको आसानी से दबाया जा सकता है? सवाल तो बहुत कुछ है लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं है।

इस केस में उत्तर प्रदेश सरकार और उत्तर प्रदेश पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान शुरू से ही है क्योंकि पहले तो उन्होंने परिजनों को भगा दिया था फिर फेक न्यूज़ बताकर घटना को दबाने की कोशिश की। पीड़िता के परिजन पुलिस के पास गए लेकिन पुलिस ने उनकी कोई सहायता नहीं की, 4-5 दिन तक पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया, फिर जनता का गुस्सा देखने के बाद पुलिस ने एक्शन लिया। उत्तर प्रदेश पुलिस ने 8 दिनों तक सामूहिक बलात्कार की धारा दर्ज नहीं की थी और  10 दिनों तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया था हालाँकि अभी चारो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। उत्तर प्रदेश पुलिस का तो यह भी कहना है की बलात्कार ही नहीं हुआ था। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का अब बयान आया है पूरे 15 दिनों के बाद की आरोपियों को कड़ी सजा दी जायेगी और SIT (Special Investigation Team) बनाई है जो इस केस की जांच करेगी। लेकिन सवाल तो यह है कि हम कैसे उत्तर प्रदेश सरकार और उत्तर प्रदेश प्रशासन पर भरोसा कर ले जिन्होंने एक परिवार को अपनी बेटी के अंतिम दर्शन तक नहीं करने दिए और ना ही इस केस को शुरू से गंभीरता से लिया, अगर लेते तो शायद आज पीड़िता जिंदा होती। इसलिए इस केस को सीबीआई को सौंप देना चाहिए। एक ट्रैक्टर को जला दिए जाने पर हमारे प्रधानमंत्री उसकी निन्दा करते है लेकिन एक बेटी को बेरहमी से मारा गया लेकिन प्रधानमंत्री जी अभी तक कुछ नहीं बोले है। केरल में एक हाथिनी की मृत्यु हो गई थी जो कि किसी ने जान बूझकर नहीं की थी, तब भारत सरकार और भारतीय मीडिया ने केरल सरकार की कड़ी आलोचना की थी और केरल सरकार को कहा था की इस केस को वो पहले प्राथमिकता दे और जल्द से जल्द रिपोर्ट हमे दे। लेकिन क्या आपने हाथरस केस में ऐसा कही पढ़ा या सुना है?

यह कैसा समाज बना रहे है हम जहां ट्रैक्टर और हाथिनी इंसान की जान से ज्यादा जरूरी हो गए है। पुलिस का काम नागरिकों को सुरक्षित महसूस कराना है लेकिन यहां तो पुलिस ने ही नागरिकों को असुरक्षित महसूस कराया है। आप ही सोचिए जब उस मां ने अपनी बेटी को उस अवस्था में देखा होगा तब उसपे क्या गुजरी होगी, क्या वो तस्वीर उस मां को ज़िन्दगीभर दुख नहीं देगी, क्या वो अब कभी सुकून से सी भी पायेगी? ऐसे ही कुछ और सवाल है- क्यों पुलिस ने इस केस को गंभीरता से नहीं लिया? क्यों पीड़िता को पहले ही दिल्ली नहीं ले जाया गया? क्यों पुलिस ने परिवार वालो को अंतिम बार उनकी बेटी को देखने भी नहीं दिया? क्यों पुलिस इतनी जल्दी में थी? इन सवालों के जवाब आपको मिले तो बताना, मुझे तो फ़िलहाल एक ही जवाब मिला है कि यह परिवार गरीब परिवार है और दलित वर्ग से आता है इसलिए इनके साथ ऐसा हुआ।

स्रोत:

  1. https://www.newslaundry.com/2020/09/29/hathras-rape-case-naming-a-rape-victim-is-a-crime-yet-that-wont-stop-users-on-twitter
  2. https://www.newslaundry.com/2020/09/29/help-us-get-justice-please-dalit-girl-assaulted-in-ups-hathras-succumbs
  3. https://theprint.in/india/hathras-dalit-woman-who-was-gang-raped-and-assaulted-dies-at-safdarjung-hospital/512611/
  4. https://www.ndtv.com/india-news/woman-gang-raped-and-assaulted-in-ups-hathras-two-weeks-ago-dies-in-delhi-hospital-2302445
  5. https://www.bbc.com/hindi/india-54337132.amp
  6. https://hwnews.in/news/national-news/tongue-cut-and-spine-broken-hathras-gangrape-victim-loses-battle-for-life-after-two-weeks/144521
  7. https://www.ndtv.com/india-news/up-hathras-rape-victim-cremated-by-cops-family-begged-to-pay-last-respects-2303004?amp=1&akamai-rum=off
  8. https://twitter.com/TanushreePande/status/1311035509246894080?s=08
  9. https://www.indiatoday.in/amp/india/story/no-proof-of-rape-tongue-being-cut-in-hathras-case-up-police-1726707-2020-09-29
  10. https://indianexpress.com/article/india/hathras-gangrape-up-cm-yogi-adityanath-forms-sit-to-investigate-incident-asks-for-report-within-7-days-6643212/
  11. https://theprint.in/india/elephant-death-inhumane-modi-govt-asks-kerala-to-identify-officers-who-acted-irresponsibly/435829/

Monday, September 21, 2020

Reality Check of Reservation

"आरक्षण" यह शब्द सुनते ही भारतीय समाज में बहुत से लोगो को खुशी होती है और बहुत से दुःखी होते है। चाहे हम किसी भी आरक्षण की बाते करे, जैसे- जातिगत आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण हो या महिलाओं को दिया जाने वाला आरक्षण हो या शारीरिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण हो या मंदिरों, मेट्रो और राशन की दुकानों पर दिया जाने वाला आरक्षण हो। जहां तक मेरी समझ है आरक्षण से वही लोग खुश या समर्थन करते है जिन्हे आरक्षण मिल जाता है और वही लोग दुःखी या विरोध करते है जिन्हे आरक्षण नहीं मिलता, हां कुछ अपवाद हो सकते है और यह भी देखने में आता है कि जो आरक्षण विरोधी है, उन्हें आरक्षण दे दिया जाये तो वो भी खुश हो जाते है या आरक्षण का समर्थन करने लग जाते है और वो फ़िर आरक्षण विरोधी नहीं रहते है। इस ब्लॉग में हम सिर्फ़ जाति के आधार पर दिए गए आरक्षण पर तथ्यों के साथ चर्चा करेंगे।

                                 Image Credit: Amar Ujala   

भारत में आरक्षण जाति के आधार पर दिया गया क्योंकि भारत में जो भेदभाव और शोषण हुआ था वो सिर्फ़ और सिर्फ़ जाति के आधार पर ही हुआ था और हज़ारों सालों से होता आया था, तो जिस आधार पर निम्न वर्ग को हमेशा नीचा दिखाया गया, शोषण किया गया उसी को आधार मानकर उनको समाज में बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए आरक्षण दिया गया। यह ठीक उसी तरह है जैसे मान लीजिए अगर किसी छोटी हाइट वाले व्यक्तियों को 100 साल तक नौकरी देना बन्द कर दे तो जाहिर सी बात है छोटी हाइट वाले व्यक्ति निराश होंगे और वो बाकियो की तुलना में पिछड़ जायेंगे तो वो इसका विरोध करेंगे और समानता के अधिकार की आवाज़ उठायेगे और जब 100 साल बाद उन्हें समानता का अधिकार दिया जायेगा तब उन्हें इसके साथ कुछ विशेषाधिकार भी दिया जायेगा ताकि इतने सालो से उनके साथ जो अन्याय हो रहा था उसको ख़त्म कर के उन्हें सबके बराबर लाया जाएं और यह विशेषाधिकार हाइट के आधार पर ही दिया जायेगा क्योंकि हाइट के आधार पर ही उनका शोषण हुआ है और तब तक दिया जायेगा तब तक वो अन्य हाइट के लोगों की बराबरी ना कर ले। भारतीय संविधान के आर्टिकल 15 और 16 के तहत भारत सरकार को अनुमति देता है कि, जो वर्ग शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र से पिछड़े हुए है उनको विशेषाधिकार देकर उनको बाकियों के बराबर ला सकती है और इसे ही आरक्षण कहा गया। सर्वप्रथम आरक्षण SC (दलित) और ST (आदिवासी) वर्ग को ही दिया गया था लेकिन बाद में मंडल कमीशन रिपोर्ट की सिफ़ारिश पर OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) वर्ग को भी आरक्षण दिया गया। 

आरक्षण सिर्फ़ भारत में ही नहीं है बल्कि यह दुनिया के हरेक देश में है जहाँ किसी विशेष वर्ग, समुदाय या जाति के लोगो के साथ भेदभाव या शोषण हुआ है जिसकी वजह से यह लोग बाकियो की तुलना में पिछड़ गये या इन्हे आगे बढ़ने का मौका ही नहीं दिया गया था। अलग अलग देशो में आरक्षण को अलग अलग नाम दिये गये है जैसे अफरमेटिव ऐक्शन (Affirmative Action), पॉजिटिव एक्शन (Positive Action), कोटा सिस्टम (Quota System), इत्यादि। दुनियाभर में इसे एक ही नाम दिया गया है और वो है "अफरमेटिव ऐक्शन"। अफरमेटिव ऐक्शन का प्रयोग दुनिया के कई देश करते है जैसे भारत, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, चीन, इजराइल, इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका, ताइवान, डेनमार्क, फ़िनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे, रोमानिया, रूस, स्लोवाकिया, यूके, कनाडा, न्यूज़ीलैंड, ब्राज़ील, बांग्लादेश और पाकिस्तान।अमेरिका में नस्लीय रूप (Racial Discrimination) से भेदभाव होता है, काले रंग के लोगो के साथ भेदभाव होता है तो काले रंग के लोगो को बराबर का  प्रतिनिधित्व देने के लिए अफरमेटिव ऐक्शन का प्रयोग  जाता है। मलेशिया में 'भूमिपुत्र' समुदाय पिछड़ा हुआ है तो यहां इनको अन्य समुदायों के बराबर लाने के लिए विशेषाधिकार दिये गये। दक्षिण अफ्रीका में भी नस्लीय रूप से भेदभाव होता था इसलिए यहाँ भी काले रंग के लोगो को बराबर का प्रतिनिधितित्व देने के लिए अफरमेटिव ऐक्शन का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार अलग अलग देशो में पिछड़े हुए समुदाय को बराबरी का प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए अलग अलग प्रकार से विशेषाधिकार दिए गए है जिन्हे अफरमेटिव ऐक्शन कहते है। 

भारत में SC, ST और OBC को नौकरी के अवसरों में (सिर्फ़ सरकारी नौकरियों में) क्रमशः 15%, 7.5% और 27% आरक्षण दिया गया, जो कुल मिलाकर 49.5% होता है, शेष 50.5% गैर-आरक्षित रखा गया। भारत की जनसंख्या को अगर SC, ST, OBC और सामान्य  वर्गो के हिसाब से देखे तो हम पाते है कि भारत में SC और ST की आबादी देश की आबादी की (2011 की जनगणना के आधार पर) क्रमशः 16.6% और 8.6% है। भारत में OBC वर्ग की जनगणना नहीं कि जाती है जो की एक शर्मनाक बात है क्योंकि हम जिसे आरक्षण दे रहे है, हमे उसका पता ही नहीं है कि देश के कितनी प्रतिशत आबादी को हम आरक्षण दे रहे है। मंडल कमीशन जिसकी रिपोर्ट के मुताबिक OBC आरक्षण दिया गया था उसके मुताबिक OBC वर्ग की आबादी देश की आबादी की 52% थी। इस हिसाब से SC, ST और OBC की कुल मिलाकर आबादी देश की आबादी की 77.2% है और जो शेष आबादी यानी 22.8%, सामान्य वर्ग की आबादी है। हालाँकि देश के कई सामाजिक कार्यकर्ताओ के मुताबिक इस डाटा में संशोधन की जरुरत है और ख़ासकर के OBC वर्ग के डाटा में। कई सामाजिक कार्यकर्ताओ और स्वतंत्र संस्थाओ ने भी जाति के आधार पर डाटा दिया है जिनमे थोड़ा थोड़ा सा अंतर है मैं यहां योगेंद्र जी यादव का डाटा बताना चाहूंगा जिनके मुताबिक SC, ST और OBC वर्ग की आबादी देश की आबादी की क्रमशः 17%, 9% और 44% है, जो कुल मिलाकर देश की आबादी का 70% है और 30% आबादी सामान्य वर्ग की है जिसमे उच्च हिन्दू जातियां या ऊंची हिन्दू जातियां, कुछ मुस्लिम, कुछ सिख और कुछ क्रिश्चियन धर्म के लोग आते है। कई धर्म (मुस्लिम, सिख, क्रिश्चियन) है जो हिन्दू नहीं है और अलग अलग राज्यो में अलग अलग वर्गो में है, जैसे कुछ सिख SC में आते है और कुछ सामान्य वर्ग में, कुछ मुस्लिम OBC में आते है और कुछ सामान्य वर्ग में, कुछ क्रिश्चियन ST में आते है कुछ सामान्य वर्ग में। इस 30% सामान्य वर्ग की आबादी में लगभग 10% आबादी सिख, मुस्लिम और क्रिश्चियन की है और 20% आबादी उच्च हिन्दू जातियो या ऊंची हिंदू जातियो की है। 

उपरोक्त आंकड़ों से निष्कर्ष निकलता है कि देश की 70% आबादी को 49.5% आरक्षण दिया गया है और बाकी 50.5% गैर-आरक्षित श्रेणी में देश की 30% आबादी आती है और इसको अगर दूसरे नज़रिए से देखे जैसे आप जहां पर है या जहां पर आप काम करते है तो उस क्षेत्र में देश की 70% आबादी वाले लोगो की संख्या कितनी है और 30% आबादी वाले लोगो की संख्या कितनी है और 30% में भी सिर्फ़ ऊची हिन्दू जाति के लोगों को देखे तो ये सिर्फ़ 20% है तो किसी भी कार्यकारी स्थल पर 70% आबादी वाले ज्यादा दिखते है या 20% आबादी वाले ज्यादा दिखते है।  

आरक्षण, गरीबी हटाओ कार्यक्रम नहीं है बल्कि यह प्रतिनिधित्व की लड़ाई है। हम राष्ट्र निर्माण की बात करते है और राष्ट्र निर्माण तभी संभव है जब सभी समुदायों का समान प्रतिनिधित्व हो और समान प्रतिनिधित्व तभी होगा जब पिछड़े हुये समुदायों को विशेषाधिकार दिये जाये। हाल ही में 'ऑक्सफ़ैम इंडिया एनजीओ' और 'न्यूज़लौंडरी वेबसाइट' ने मिलकर' मीडिया क्षेत्र' में एक सर्वे (Who Tells Our Stories Matters) किया था जिसमे पता चला की मीडिया क्षेत्र में सिर्फ़ ऊंची हिंदू जातियों ने कब्ज़ा कर रखा है। सर्वे के मुताबिक, 121 न्यूज़ रूम के नेतृत्व के पदों (प्रधान संपादक, प्रबंध संपादक, कार्यकारी संपादक, ब्यूरो प्रमुख, इनपुट / आउटपुट संपादक) में से 106 पर ऊंची हिंदू जातियों के पत्रकारों ने कब्ज़ा कर रखा है और एक भी पत्रकार SC और ST वर्ग का नहीं है। सर्वे के मुताबिक ही, हर 4 एंकर में से 3 एंकर ऊँची जाति के है और न्यूज़ चैनलों में जो पैनेलिस्ट आते है उनमे 70% ऊँची हिंदू जातियों के होते है। दलितों और आदिवासियों के द्वारा हिंदी और अंग्रेजी समाचार पत्रों में  क्रमशः सिर्फ़ 10% और 5% ही लेख लिखे जाते है। जाति से संबंधित जो लेख हिंदी और अंग्रेजी समाचार पत्रों में लिखे जाते है वो आधे से ज्यादा ऊँची हिन्दू जातियों द्वारा लिखे जाते है। यह वही भारतीय मीडिया है जो आरक्षण के बारे में जनता को बताता है जिसमे ऊँची हिंदू जातियों द्वारा कब्ज़ा किया हुआ है। इससे मिलता जुलता हाल भारतीय न्यायपालिका (Judiciary of India) का है, भारतीय न्यायपालिका में SC, ST और OBC के कुल मिलाकर सिर्फ़ 38% जज है जबकि इनकी (SC,ST,OBC) आबादी देश की आबादी की 70% है। मोदी सरकार के 89 सचिवों में से सिर्फ़ 4 सचिव SC, ST और OBC वर्ग के है और मोदी कैबिनेट के 58 मंत्रियो में से 23 मंत्री SC, ST और OBC वर्ग के है, 3 मंत्री सिख और मुस्लिम धर्म के है जबकि ऊँची हिंदू जातियों के 32 मंत्री है।

NSSO (National Sample Survey Organisation, राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय) के मुताबिक भारत में ST, SC और OBC के क्रमशः 42.7%, 39% और 31.8% लोग पढ़े लिखे नहीं है। SC, ST और OBC के क्रमशः 0.60%, 0.80% और 1.5% लोग ही स्नातकोत्तर (Postgraduate) या इससे ऊपर की पढ़ाई किए है। भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था (Higher Education) में ST, SC, OBC, मुस्लिम धर्म और अन्य अल्पसंख्यकों के क्रमशः 1.99%, 6.95%, 21.92%, 3.09% और 3.2% अध्यापक/प्रोफेसर है जबकि ऊंची हिंदू जातियों के 62.85% अध्यापक/प्रोफेसर है।  इन आंकड़ों से निष्कर्ष निकलता है कि अभी भी भारतीय समाज में बुरी तरह से असमानताएं व्याप्त है। अक्सर कहा जाता है कि पढ़े लिखे नागरिक ही देश को प्रगतिशील या विकसित बनाते है लेकिन भारत में कुछ विशेष वर्ग के ही नागरिक पढ़े लिखे है। यह स्तिथि तो तब है जब आरक्षण है, अगर आरक्षण नहीं होता तो यह स्तिथि ओर भी बुरी होती। 

                                    Image Credit: The Wire

वर्ल्ड इनेक्वालिटी डाटाबेस (World Inequality Database) के मुताबिक SC, ST और OBC भारत की राष्ट्रीय औसत आय से क्रमशः 21%, 34% और 8% कम कमाते है जबकि ऊंची हिन्दू जातियां भारत की राष्ट्रीय औसत आय से 47% अधिक कमाती है। सामाजिक, आर्थिक और जातिय जनगणना के मुताबिक SC और ST में क्रमशः 54.71% और 35.65% भूमिहीन मजदूर है, SC और ST के क्रमशः  11.30% और 8.52% के पास ही दुपहिया वाहन है, SC और ST के क्रमशः 6.47% और 3.43% के पास फ्रिज है। SC और ST के क्रमशः 31.73% और 57.39% के पास किसी भी प्रकार का कोई फोन नहीं है। 68% दलितों के घर पेयजल नहीं आता है, 59% दलितों के पास बिजली कनेक्शन नहीं है और 77% दलितों के घरों में शौचालय नहीं है। OBC और सामान्य वर्ग के लिए अलग से सामाजिक, आर्थिक और जातिय जनगणना नहीं होती है जो कि बहुत ही गलत है और इसकी वजह से इनका अलग से डाटा उपलब्ध नहीं है लेकिन उपरोक्त आंकड़ों से निष्कर्ष निकलता है कि भारत में SC और ST आर्थिक स्थिति में भी काफ़ी पिछड़े हुए है, इनकी आय अन्य वर्गो की आय से काफ़ी ज्यादा कम है।

अक्सर आरक्षण विरोधी यह तर्क देते है कि आरक्षण का लाभ सिर्फ़ वही उठाते हैं जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं और आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता जो कि एक गलत तर्क है और यह नीचे दिए गए तथ्यों से सिद्ध हो जायेगा। NSSO के मुताबिक 1 एकड़ जमीन से मासिक आय ₹4152 और मासिक खर्चा ₹5401 होता है मतलब इनको ₹1249 का नुकसान होता है और जिनके पास 1 एकड़ जमीन होती है वो आर्थिक रूप से संपन्न नहीं होते हैं। 81% दलित जो सरकारी नौकरियों में है उनके पास 1.2 एकड़ जमीन से भी कम है। 68% दलित जो सरकारी नौकरियों में है वो बाहरवी से कम पढ़े है और जो बाहरवी से कम पढ़े होते हैं उनकी आर्थिक स्थिति सही नहीं होती हैं। केंद्रीय पब्लिक सर्विस में 20% दलित काम करते हैं, इनमें से 81% दलित सी या डी ग्रेड की नौकरियां करते हैं और सी या डी ग्रेड की नौकरियां भी वही करते हैं जिनके घर के आर्थिक स्थिति सही नहीं होती है। उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि आरक्षण का लाभ आरक्षित वर्ग के निचले तबकों को मिल रहा है लेकिन समाज के लोग आरक्षित वर्ग के कुछ ही संपन्न लोगों का उदाहरण देकर आरक्षण का विरोध करते हैं। 

यह भी तर्क दिया जाता है कि आरक्षण की व्यवस्था से नौकरी लगने से गुणवत्ता/उत्पादकता में कमी आती है लेकिन यह भी एक गलत धारणा है जो कुछ आरक्षण विरोधियों ने बना दी है जबकि वास्तविकता यह नहीं है। भारतीय रेलवे, जो भारत में सबसे ज्यादा नौकरियां देता है, उसपे एक शोध (डज अफरमेटिव ऐक्शन अफेक्ट प्रोडक्टिविटी इन द इंडियन रेलवे, Does Affirmative Action Affect Productivity In The Indian Railways)  हुआ था जिसके मुताबिक आरक्षण की व्यवस्था से लगने वाली नौकरियो की वजह से भारतीय रेलवे की गुणवत्ता/उत्पादकता (Productivity) में कमी नहीं आयी है और ना ही उत्पादकता वृद्धि दर (Productivity Growth) में कमी आयी है बल्कि कुछ शोध के परिणामों में उत्पादकता और उत्पादकता वृद्धि दर बढ़ी है। ऐसा इस लिए हुआ है कि अगर एक जगह काम करने वाले अलग अलग वर्गो से आते है तो विविधता (Diversity) बढ़ती है और विविधता बढ़ने से उत्पादकता बढ़ती है या बराबर ही रहती है लेकिन घटती नहीं है। 

इस लेख में प्रयोग किए गए आंकड़ों से निष्कर्ष निकलता है कि आरक्षण की भारत में जरूरत है क्योंकि अभी भी भारत में जाति के आधार पर भेदभाव होता है, NCRB (National Crime Records Bureau, राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 13000 केस जाति के आधार पर किए गए भेदभाव के है और यह तो वो है जो रजिस्टर हो जाते है बाकी कई केस तो रजिस्टर ही नहीं होते है। आरक्षण का मुख्य उद्देश्य ही आरक्षण को खत्म करना था, क्योंकि पहले पढ़ने लिखने का अधिकार सिर्फ़ कुछ विशेष वर्ग को ही होता था वो भी तो आरक्षण ही था और कुछ तर्क यह भी आते है कि आरक्षण सिर्फ़ 10 सालों के लिए ही था, जी हां 10 सालो के लिए ही था लेकिन वो सिर्फ़ राजनैतिक आरक्षण (चुनावों में दिया जाने वाला) था ना कि शिक्षा और रोजगार के अवसरों में दिया जाने वाला आरक्षण। इसलिए हमें आरक्षण को लेकर अफवाहें फैलाना बन्द करना होगा और सोचना होगा कि जो वर्ग हर क्षेत्र में (शिक्षा, मीडिया, न्यायपालिका, राजनीति) में पीछे है और आर्थिक रूप से भी कमज़र है उनको आगे बढ़ने का मौका दिया जाना चाहिए। अक्सर देश में बढ़ती बेरोजगारी का कारण आरक्षण को बता दिया जाता है लेकिन भारत में मात्र 2-3% सरकारी नौकरियां है और आरक्षण सिर्फ़ सरकारी नौकरियों में ही है इसलिए यह पूरी तरह से एक राजनैतिक कारण है, अपनी नाकामयाबियों को छिपाने के लिए नेताओं द्वारा ऐसा बयान दे दिया जाता है और प्रोफ़ेसर विवेक कुमार ने इसे समझाने के लिए कहा था कि जब भी हम इधर कि तरफ़ बस का इंतजार करते है तो हमें लगता है कि उधर के तरफ़ ज्यादा बसे आ रही है, ठीक ऐसा ही गैर आरक्षित वर्ग को लगता है कि उनका हक आरक्षित वर्ग ले रहा है जबकि ऐसा है नहीं। हमे यह पूछना चाहिए कि जाति के आधार पर भेदभाव होना कब बन्द होगा, ना कि यह की जाति के आधार पर आरक्षण कब ख़त्म होगा। जब समाज में जाति के आधार पर भेदभाव होना बन्द हो जायेगा, आरक्षण भी अपने आप खत्म हो जायेगा। ऐसा भी नहीं है कि आरक्षण में कमियां नहीं है, बेशक कमियां है और कई जगह दुरुपयोग भी किया जाता होगा लेकिन हमारे देश में ऐसा कौनसा नियम, कानून या पोलिसी है जिसमें कमियां या उनका दुरुपयोग नहीं होता। कई ऊंची जातियों के नागरिक भी आर्थिक रूप से कमज़ोर होंगे लेकिन वो आरक्षण की वजह से नहीं सरकार की कमज़ोर नीतियों कि वजह से आर्थिक रूप से कमज़ोर है और उन्हें सरकार से प्रश्न ना पूछना पड़े इसलिए सरकार अपनी गलतियों को छिपाकर सारा भार आरक्षण पर डाल देती है।

नीचे दिये वीडियो में बताया गया है कि कैसे आरक्षित वर्गों के नागरिको के साथ भेदभाव होता है:


                  Video Credit: NDTV India


स्रोत:

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Affirmative_action
  2. https://hindi.firstpost.com/special/reservation-is-in-many-countries-like-america-and-japan-ambedkar-and-nehru-benifits-of-reservation-and-cast-system-of-india-71632.html
  3. https://theconversation.com/affirmative-action-around-the-world-82190
  4. https://en.wikipedia.org/wiki/Quotaism
  5. http://dspace.bracu.ac.bd/bitstream/handle/10361/2085/Quota%20System%20in%20Bangladesh%20Civil%20Service%20An.pdf?sequence=1
  6. https://en.wikipedia.org/wiki/Bumiputera_(Malaysia)
  7. https://en.wikipedia.org/wiki/Quota_system_in_Pakistan
  8. https://en.wikipedia.org/wiki/Reservation_in_India
  9. https://scroll.in/article/932660/in-charts-indias-newsrooms-are-dominated-by-the-upper-castes-and-that-reflects-what-media-covers
  10. https://www.oxfamindia.org/sites/default/files/2019-08/Oxfam%20NewsLaundry%20Report_For%20Media%20use.pdf
  11. https://thewire.in/law/annual-diversity-statistics-judiciary
  12. https://theprint.in/india/governance/of-89-secretaries-in-modi-govt-there-are-just-3-sts-1-dalit-and-no-obcs/271543/
  13. https://timesofindia.indiatimes.com/india/union-cabinet-2019-pm-tries-to-accommodate-most-castes/articleshow/69589639.cms
  14. https://www.livemint.com/Opinion/vq7cTOUmxzDSB4x5QwguVL/Three-charts-that-show-why-reservations-are-desirable.html
  15. https://www.livemint.com/Opinion/9vRG6mUBIVMUblcxIvJqgM/Why-Bihar-is-extra-sensitive-to-reservation-politics.html
  16. https://thewire.in/education/higher-education-is-still-a-bar-too-high-for-muslims-dalits
  17. https://www.livemint.com/Opinion/myrJLTnIfiNVSaJF8ovdRJ/Locating-caste-in-Indias-farm-economy.html
  18. https://www.business-standard.com/article/current-affairs/income-inequality-in-india-top-10-upper-caste-households-own-60-wealth-119011400105_1.html
  19. https://secc.gov.in/stateSummaryReport
  20. http://www.cdedse.org/pdf/work185.pdf
  21. https://indianexpress.com/article/opinion/columns/ambedkar-and-political-reservation-6557591/
  22. http://mospi.nic.in/sites/default/files/publication_reports/nss_rep_576.pdf

Wednesday, January 22, 2020

Internet Shutdowns in India

पिछले कुछ सालों से भारत इंटरनेट बन्द करने में दुनियाभर के सभी देशों को पछाड़ कर शीर्ष पर पहुंच गया है। वैसे तो सरकार सभी काम धीरे धीरे ऑनलाइन कराने कि सोच रही है लेकिन शायद वो ये भूल रहे है कि ऑनलाइन काम कराने के लिए इंटरनेट की जरूरत पड़ती है। थोड़े थोड़े दिनों में देश के किसी ना किसी कोने में इंटरनेट बन्द कर दिया जाता है जिस से आम नागरिकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

                              फ़ोटो स्रोत: एफआईआई

मै यहां कुछ डाटा बताना चाहूंगा जिस से पता चलेगा कि इंटरनेट बन्द करने के मामले में हम कितने ज्यादा आगे है:
  1. भारत में 2012 से 2019 तक 374 बार इंटरनेट बन्द किया गया है जिसमें 106 बार तो अकेले 2019 में ही किया गया है।
  2. भारत में 2019 में 4,196 घंटे तक इंटरनेट बन्द किया गया है जिस से 1.3 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
  3. 2012 से 2017 के बीच भारत में 16,315 घंटे तक इंटरनेट बन्द किया गया था जिस से 3.04 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था।
  4. कश्मीर में 4 अगस्त से अभी तक इंटरनेट बन्द है, ये किसी भी देश में सबसे लंबी अवधि तक किया जाने वाले इंटरनेट बन्द है।
  5. 2016 से 2018 के बीच भारत ने 154 बार इंटरनेट बन्द किया था।


                              फ़ोटो स्रोत: फोर्ब्स



इन सब आंकड़ों से कहा जा सकता है कि भारत इंटरनेट बन्द करने के मामले में दुनिया में अपनी छाप छोड़ रहा है। भारत इंटरनेट बन्द करने के मामले में एक नम्बर पे बना हुए है जो की भारत के लिए मेरे हिसाब से शर्म की बात है।


डिजिटल इंडिया बोलकर आप भारत में सिर्फ़ इंटरनेट बन्द कराने में व्यस्त हो, ऐसे कैसे मेरा भारत डिजिटल भारत बनेगा। आज कल हर काम इंटरनेट से होता है लेकिन जब इंटरनेट ही नहीं रहेगा तो काम कैसे होगा, इस से आम आदमी को बहुत तकलीफ़ का सामना करना पड़ता है।


किसी भी परीक्षा का ऑनलाइन फॉर्म भरना, कैश लैस इकोनॉमी की तरफ़ बढ़ना, जीएसटी रिटर्न भरना, बैंकिंग के काम करना और भी कई काम है जो सिर्फ़ इंटरनेट के माध्यम से होते है लेकिन इसके बन्द कर देने से ये सब नहीं हो पाते है। उद्योग धंधे ठप्प पड़ जाते है।




      फ़ोटो स्रोत: स्क्रॉल (इन राज्यो में इंटरनेट बन्द किए)


विस्तृत जानकारी के लिए आप नीचे दिए लिंक में पढ़ सकते है:-

Monday, December 9, 2019

GDP for a Common Man

हम रोज़ अखबारों में पढ़ते है कि भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पात, Gross Domestic Product, GDP) इतनी है या इतनी हो गयी है या घट गयी है या बढ़ गयी है, वगैरहा- वगैरहा, लेकिन हम समझ नहीं पाते है कि जीडीपी होती क्या है और ये घटे या बढ़े, इससे हमारे ऊप्पर क्या असर पड़ता है। हम यहां यही चर्चा करेंगे की एक आम आदमी के लिये जीडीपी का क्या मतलब होता है और इसके घटने बढ़ने से हमारी ज़ेब पर कितना असर पड़ता है।


अर्थशास्त्र की भाषा में जीडीपी एक विशिष्ट अवधि (निश्चित समयावधि) में देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य (Monetary or Market Value) है  और इसके माध्यम से ही हम किसी भी अर्थव्यवस्था का आकार और वृद्धि दर (Growth Rate) बता सकते है। अगर हम इसे आसान भाषा में समझे तो ऐसा कह सकते है कि जीडीपी से हम किसी भी अर्थव्यवस्था की सेहत के बारे में पता लगा सकते है। 

अब हम असली मुद्दे पे आते है कि इसका आम आदमी पे क्या असर होता है, जीडीपी का संबंद सीधा प्रति व्यक्ति आय से जुड़ा हुआ है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में मासिक प्रति व्यक्ति आय 10,534 रूपए है और मान लीजिये इस वित्तीय वर्ष में जीडीपी ग्रोथ रेट 5% है तो अगले वित्तीय वर्ष (2019-20) में प्रति व्यक्ति आय 526 रूपए बढ़ जायेगी लेकिन मान लीजिये अगर जीडीपी ग्रोथ रेट 4% ही है तो अगले वित्तीय वर्ष में प्रति व्यक्ति आय 421 रूपए ही बढ़ेगी, मतलब की अगर ग्रोथ रेट 1% कम होते ही मासिक प्रति व्यक्ति आय 105 रूपए कम हो जाती है और अगर सालाना देखे तो एक व्यक्ति को 1260 रूपए का नुकसान होता है। 



                                  

इस प्रकार हम कह सकते है कि जीडीपी का संबंद प्रति व्यक्ति आय से जुड़ा हुआ है, जीडीपी ग्रोथ रेट कम होते ही प्रति व्यक्ति आय भी कम हो जाती है जिसका असर सबसे ज्यादा गरीब वर्ग को होता है और अभी वर्तमान में भारत में जीडीपी ग्रोथ रेट कम होती ही जा रही है। 





Wednesday, December 4, 2019

How to Revive Economic Growth in India

Leadership is not about you; it’s about investing in the growth of others.
      -Ken Blanchard


किसी भी चीज़ को ठीक करने से पहले हमे ये पता लगाना होता है कि गलती कहाँ हुई है और फ़िर उस गलती को मानना भी होगा, अगर हम गलती ही नहीं मानेंगे तो कैसे हम चीज़े ठीक करेंगे। इसी प्रकार भारत की अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने से पहले भारत सरकार को ये मानना ही होगा की अभी वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी से नीचे उतरी हुई है, तभी इसे वापस पटरी पर लाया जा सकता है। वित्तीय वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही के आंखड़ो के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था 4.5% की ग्रोथ रेट से आगे बढ़ रही है जो की पिछले 6 सालों में सबसे कम है।

भारतीय अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिये मांग (Demand) में आ रही कमी को दूर करना होगा और ये काम सरकार कई तरीको से कर सकती है, इसका पहला तरीका लोगों को रोज़गार मुहैया कराने का होगा। 2017-18 वित्तीय वर्ष में भारत में पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी दर्ज की गई है। अगर लोगों के पास रोज़गार होगा तो वो पैसे ख़र्च करेंगे और पैसे ख़र्च करेंगे तो मांग बढ़ेगी, जिसकी भारतीय अर्थव्यवस्था को सख़्त जरुरत है। जब लोगों के पास रोज़गार नहीं होता है तो वो ख़र्चा करने से डरते है और उनको जो भी खरीदना होता है उसे वो आगे के लिये टाल देते है। मांग में आ रही कमी को किसानो को उनकी फ़सल का उचित दाम दे के भी किया जा सकता है। स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार किसानो को उनकी फ़सल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price, MSP) मिलना चाहिये।


बैंको में बढ़ रहे लगातार NPA (Non Performing Asset, Bad Loan) की वजह से बैंको ने अब लोन देना थोड़ा मुश्किल कर दिया है, हालांकि बैंक बड़े-बड़े उद्योगपतियों को तो लोन दे रहे है लेकिन छोटे और मध्यम उद्योगपतियों को लोन लेने में काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है जिसकी वजह से उन्हें व्यापर करने में दिक्कत आ रही है। इसलिये सरकार को बैंको को वापस विश्वाश में लेना होगा की वो छोटे कारोबारियों को भी पैसा दे क्यूंकि ये लोग ही ग्रामीण भारत में ज़्यादा रोज़गार देते है और इनका NPA बड़े कारोबारियों की तुलना में कम होता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी से नीचे उतारने के सबसे बड़े कारण एक तो नोटबंदी है और जिस प्रकार से GST (Goods & Services Tax, वस्तु और सेवा कर) लागू किया गया था, वो इसका दूसरा कारण है। अब नोटबंदी का तो कुछ नहीं किया जा सकता, जो हो गया वो हो गया लेकिन GST को सुधारा जा सकता है। आये दिन GST के नियमो में कुछ फ़ेरबदल किया जाता है, अभी तक सरकार एक स्थिर GST नहीं बना सकी, लोग अभी तक इसके कायदे कानून ही नहीं समझ पा रहे है, खासकर के छोटे और मध्यम वर्ग के व्यापारी। लोग GST भरते है लेकिन फ़िर उनको रिफंड समय पे नहीं मिलता, जिसके चलते वो सही से व्यापर नहीं कर पाते है। सरकार को सरल और स्थिर GST बनाना होगा जिसमे सभी को आसानी हो।


इसमें बिल्कुल भी शक नहीं है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी दुनिया में लोकप्रिय है लेकिन क्या उन्होंने इस लोकप्रियता का फ़ायदा भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने में लगाया है? इसका ज़वाब है नहीं क्योंकि उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद, अगर 2018-19 को छोड़ दिया जाये तो निर्यात (Export) कम ही हुआ है। भारत ने 2013-14 में 314.4 बिलियन डॉलर निर्यात किया था जो 2017-18 में घटकर 303.3 बिलियन डॉलर हो गया था।  इसलिये भारतीय प्रधानमंत्री को विदेशी दौरों पे निर्यात को बढ़ावा देने के प्रयास करने होंगे जिससे भारतीय कारोबारियों को फ़ायदा हो और अगर इनको फ़ायदा होगा थो उससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी फ़ायदा होगा।

हमारे देश में ही कई ऐसे अर्थशास्त्री है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पे लाने में सरकार की मदद के सकते है लेकिन शर्त ये है कि भारत सरकार को उनकी सुननी पड़ेगी लेकिन वर्तमान सरकार तो किसी की सलाह लेने में विश्वाश ही नहीं रखती। अमर्त्य सेन और अभिजीत बनर्जी दोनों को अर्थशास्त्र में नोबेल पुरूस्कार मिला है, वही मनमोहन सिंह जिनके बारे में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ने कहा था की जब मनमोहन सिंह बोलते है तो पूरी दुनिया इन्हे ध्यान से सुनती है, रघुराम राजन जिन्होंने अमेरिका में आयी वित्तीय मंदी (Financial Crisis 2008) के बारे में पहले ही चेता दिया था और भी कई ऐसे बड़े नाम है लेकिन सवाल ये है कि इतने नामी अर्थशास्त्रियों की भी क्यों नहीं सुन रही है भारत सरकार।

जानिये: क्या भारतीय अर्थव्यवस्था वाक़ई बुरे दौर से गुज़र रही है ?

Before we can fix anything, we have to find out where the mistake has been made and then we will have to accept that mistake, if we do not accept the mistake then how will we fix it. Similarly, before bringing the Indian economy back on track, the Government of India will have to agree that at present the Indian economy is derailed, only then it can be brought back on track. According to the data of the second quarter of the financial year 2019-20, the Indian economy is growing at a growth rate of 4.5%, which is the lowest in the last 6 years.

In order to get the Indian economy back on track, the shortfall in Demand has to be overcome and the government can do this in many ways, the first way will be to provide employment to the people. In the 2017-18 financial year, India has recorded the highest unemployment in the last 45 years. If people have employment then they will spend money and if they spend money then demand will increase, which the Indian economy desperately needs. When people do not have employment, they are afraid of spending and they postpone whatever they have to buy. The reduction in demand can also be done by giving the farmers a reasonable price for their crops. According to the Swaminathan Commission report, farmers should get the Minimum Support Price (MSP).

Due to the constantly increasing NPA (Non Performing Asset, Bad Loan) in banks, banks have now made it a bit difficult to give loans, although banks are giving loans to big industrialists but small and medium industrialists are not getting enough loans. They are facing difficulties due to which they are facing difficulty in doing business. That is why the government will have to bring back the trust in banks that they also give money to small traders because these people give more employment in rural India and their NPA is less than that of big businessmen.

Demonetisation is one of the biggest reasons for derailing the Indian economy and the way GST (Goods & Services Tax, Goods and Services Tax) was implemented is another reason. Now nothing can be done about demonetisation, what happened is done but GST can be rectified. People are not yet able to understand its rules and regulations, especially the small and middle traders. People fill GST but then they do not get refund on time, due to which they are not able to trade properly. The government will have to create a simple and stable GST in which everyone can get ease.

There is absolutely no doubt that Indian Prime Minister Narendra Modi is popular all over the world, but has he used this popularity to improve the Indian economy? The answer is no, because after he became the Prime Minister, the export has reduced (except 2018-19). India exported $ 314.4 billion in 2013-14, which was reduced to $ 303.3 billion in 2017-18. Therefore, the Indian Prime Minister will have to make efforts to promote exports on foreign tours, which will benefit the Indian businessmen and if they benefit, it will also benefit the Indian economy.

There are many economists in our country who can help the government to get the Indian economy back on track, but the condition is that the Indian government will have to listen to them, but the present government does not believe in taking advice from anyone. Amartya Sen and Abhijeet Banerjee have both received Nobel Prizes in Economics, Manmohan Singh whom the former President of America had said that when Manmohan Singh speaks, the whole world listens carefully to him, Raghuram Rajan who warned America about the financial crisis three years ago. There are many such big names but the question is that why is Indian government not listening even such well-known economists.


References:

Thursday, November 21, 2019

JNU Fee Hike

"Collapsing any nation does not require the use of atomic bombs or the use of long-range missiles. It only requires lowering the quality of education and allowing cheating in the examinations by the students." 
-A professor at a University in South Africa 

दिल्ली का जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है और इसकी वजह है कि JNU में अचानक से फीस में वृद्धि कर दी गई है जिसका वहाँ के विद्यार्थी विरोध कर रहे है, उनकी मांग है कि जब तक इस फीस वृद्धि को वापस नहीं लिया जायेगा वो इसका विरोध करते रहेंगे। वहीं दूसरी तरफ़ JNU प्रशासन कह रहा है कि JNU में 12 करोड़ रूपए की फंड की कमी चल रही है और यहाँ कई साल से फ़ीस नहीं बढ़ाई है, इसलिये वो फ़ीस बड़ा रहे है। इस विवाद से कई बातें उभरकर सामने आयी है जिसपे एक-एक कर के बात करेंगे।

JNU प्रशासन ने कुछ दिन पहले ही नया हॉस्टल मैन्युअल बनाया है जिसमे कई नियमो में बदलाव किये गये है जो इस प्रकार है। वर्तमान में JNU में सिंगल बेड़ कमरे का और डबल बेड़ कमरे का किराया क्रमश 10 रूपए और 20 रूपए प्रति महीना है जो अब बढ़ाकर क्रमश 300 रूपए और 600 रूपए प्रति महीना कर दिया गया है और अब इसके साथ ही हॉस्टल में रहने वाले विद्यार्थियों को 1700 रूपए प्रति महीना का सर्विस चार्ज (Service Charge) भी देना होगा जो पहले नहीं देना होता था, इसकी वजह से हॉस्टल फ़ीस अब 2300 रूपए (सिंगल बेड़ कमरे) और 2600 रूपए (डबल बेड़ कमरे) प्रति महीना हो जाती है। पहले पानी और बिजली का बिल विद्यार्थियो को नहीं देना होता था लेकिन अब ये भी देना होगा, इस प्रकार अगर हम सालाना फ़ीस देखे तो वो 27,600-32,000 से बढ़कर 55,000-61,000 रूपए हो जायेगी और इस से JNU भारत का सबसे महँगा केंद्रीय विश्वविद्यालय बन जायेगा। इसके अलावा ओर भी कई बदलाव किये है जैसे मैस में खाना खाने जाने के लिये ड्रेस कोड और लाइब्रेरी के रीडिंग रूम अब 24*7 नहीं खुलेंगे। 


कई लोग इस फीस वृद्धि को ये बोल कर सही ठहरा रहे है कि JNU में विद्यार्थी पढ़ाई-लिखाई नहीं करते है बस धरना-हड़ताल करने में ही लगे रहते है। कुछ लोगो का तो ये भी मानना है कि वहाँ पढ़ाई-लिखाई के अलावा सब कुछ होता है। लेकिन लोगो के इस तर्क को बड़ी आसानी से खारिज़ किया जा सकता है क्यूंकि अभी हाल ही में JNU के पूर्व विद्यार्थी (अभिजीत बनर्जी) को अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार मिला है और अभी की भारत सरकार में वित्त मंत्री (निर्मला सीतारमन) और विदेश मंत्री (एस जयशंकर) दोनों ही JNU से ही पढ़े हुये है जो की जाहिर है कि पढ़ाई-लिखाई के बलबूते यहाँ तक पहुंचे होंगे। JNU को राष्ट्रपति के द्वारा 'सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय' पुरस्कार से भी नवाज़ा जा चुका है और JNU भारत का एकमात्र विश्वविद्यालय है जो कि विश्व की टॉप-400 विश्वविद्यालयो (कला और मानविकी, Arts & Humanities) में चुना गया है। 

इसके बाद ये भी कहा जा रहा है कि JNU के विद्यार्थी टैक्स देने वालो का पैसा बर्बाद कर रहे है क्यूंकि JNU को पैसा सरकार देती है और सरकार को पैसा हम लोग ही देते है। टैक्स देने वालो से ये मै ये पूछना चाहुँगा कि सरकार आपका पैसा शिक्षा में लगा रही है उससे आपको दिक्कत है लेकिन सरकार आपके पैसे से 3000 करोड़ रूपए की मूर्ति बनाती या फ़िर सिर्फ़ प्रचार में ही 4300 करोड़ रूपए ख़र्च करती है उससे आपको कोई दिक्कत नहीं है। आपका या आपके बच्चो का पढ़ना ज्यादा जरूरी है या सरकार का प्रचार में ही पैसे ख़र्च करते रहना या मुर्तिया बनाना ज्यादा जरुरी है। JNU को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (National Assessment & Accreditation Council, NAAC) ने सर्वश्रेष्ठ ग्रेड 'A++' दी हुई है, मतलब भारत सरकार खुद मानती है कि JNU भारत के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयो में से एक है क्यूंकि ये ग्रेड भारत सरकार ही देती है। 


ये भी तर्क दिया जा रहा है कि JNU में सिर्फ़ 40% विद्यार्थी ही है जो बढ़ी हुई फीस नहीं भर सकते बाकी 60% विद्यार्थी तो भर ही सकते है तो सभी क्यों विरोध कर रहे है। इसका सीधा जवाब ये है कि हमारी सरकार लोकसभा के प्रत्येक सदस्य (सांसद) पे 2.7 लाख रूपए प्रति महीना ख़र्च करती है लेकिन फ़िर भी इनको सब्सिडी वाला खाना और सब्सिडी वाला बंगला दिया जाता है जबकि इनमे तो 88% सांसद करोड़पति है। हम इसका बिलकुल भी विरोध नहीं करते है, लेकिन अगर विद्यार्थी सब्सिडी के पैसो से पढ़ रहा है तो हम उसका विरोध करने लग जाते है। अब हमे ही ये सोचना चाहिये की हमारे पैसे से हम किसे लाभान्वित करना चाहते है -किसी विद्यार्थी को या किसी करोड़पति सांसद को।

अब बात ये आती है कि क्या सरकार के पास वाकई में शिक्षा पर ख़र्च करने को पैसा नहीं है तो इसका जवाब है कि सरकार के पास पैसा है लेकिन वो ख़र्च ही नहीं करना चाहती। भारत सरकार 2007 वित्त वर्ष से ही माध्यमिक और उच्च शिक्षा के नाम पर कर वसूल रही है और ये 94,000 करोड़ रूपए है, जिसे अभी तक शिक्षा कोष में स्थानांतरित या शामिल नहीं किया गया है। इसका मतलब तो यही हुआ ना कि सरकार शिक्षा के लिए पैसे ही ख़र्च नहीं करना चाहती जबकि सरकार के पास ख़र्च करने के लिये पर्याप्त पैसा है।

स्रोत:

Sunday, October 27, 2019

Crisis in Indian Economy: Truth vs Hype

People stop buying things, and that is how you turn a slowdown into a recession.
-Janet Yellen

पिछले काफी दिनों से ये बहस चल रही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था सही पटरी पर चल रही है या नहीं। कुछ लोग बोल रहे है कि सब ठीक है और कुछ बोल रहे है कि कुछ भी ठीक नहीं है। यहाँ तक कि हमारे प्रधानमंत्री ने भी अमेरिका के ह्यूस्टन में हुये हाउदी मोदी कार्यक्रम में कहा था कि भारत में सब ठीक है लेकिन अभी कुछ दिनों पहले ही अर्थव्यवस्था में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले भारतीय अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत बहुत बुरी है। अब आगे हम यही जानने की कोशिश करेंगे की वाक़ई में सब ठीक है या नहीं। 


NSSO (राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय) भारत में जीडीपी के बारे में बताता है और इसके मुताबिक 2019-20 की पहली तिमाही (जून तिमाही) में 5% जीडीपी ग्रोथ रेट है जो कि 2018-19 की जून तिमाही से 3% कम है, 2018-19 की जून तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 8% थी। बहुत से स्वतंत्र संस्थाओ को लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी बुरे दौर से गुज़र रही है, इसीलिये उन्होंने भारत की अनुमानित जीडीपी ग्रोथ रेट में कमी की है। RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) ने 2019-20 वित्तीय वर्ष के लिये अनुमानित जीडीपी ग्रोथ रेट 6.9% से घटाकर 6.1% कर दी है। World Bank ने भी 2019-20 के लिये अनुमानित जीडीपी ग्रोथ रेट 7.5% से घटाकर 6% कर दी है। IMF (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने भी 2019-20 के लिये अनुमानित जीडीपी ग्रोथ रेट 7% से घटाकर 6.1% कर दी है। ADB (एशियाई विकास बैंक) ने भी 2019-20 के लिये अनुमानित जीडीपी ग्रोथ रेट 7.2% से घटाकर 6.5% कर दी है। इन सभी आंखड़ो से ये तो स्पष्ट होता है कि भारत की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुज़र रही है।




तेज़ी से आगे बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को एक दम से ऐसा क्या हो गया कि अब ये मंदी के दौर से गुज़र रही रही है, इसका पहला जवाब 'कुल माँग' (Aggregate Demand) में कमी आना है और माँग में कमी आने के कई कारण है उनमे से पहला कारण तो नोटबंदी है। एक दम से 86% मुद्रा (करेंसी, 500-1000 के नोट) को चलन से बाहर कर देने से अर्थव्यवस्था को झटका लगा और सबसे बड़ा झटका असंगठित क्षेत्र (किसान, मज़दूर, छोटे व्यापारी, सब्जी बेचने वाले, इत्यादि) को लगा जो कि भारत की जीडीपी में 45% का योगदान देता है और 90-95% लोग यहाँ काम करते है। असंगठित क्षेत्र में ज्यादातर धंधे नगद में होते है, और नगद में पैसा ना होने की वज़ह से व्यापारियों को धंधा चलाने में मुश्किलें आने लगी। नोटबंदी की वज़ह से लोगो की आय कम हो गई, क्यूंकि लोगो के पास पैसे नहीं थे और पैसे नहीं होंगे तो ख़र्चा भी नहीं होगा और ख़र्चा नहीं होगा तो माँग में कमी होनी ही थी और इस से फिर लोगो ने नौकरियाँ भी गवां दी। नोटबंदी के बाद जिस तरीके से GST (वस्तु एवं सेवा कर) लागू किया उसने छोटे कारोबारियों की कमर तोड़ दी क्यूंकि GST को इतना जटिल बनाया गया कि लोग इसे समझ ही नहीं पाये, तो वो खुद से तो GST भर ही नहीं पा रहे थे, इसके लिये उनको CA (Chartered Accountant) के पास जाना पड़ता था और फ़िर GST भर देने के बाद उनको सही समय पे रिफंड भी नहीं मिलता था जिसकी वज़ह से व्यापर करने में दिक्कत आने लगी।

बेरोजगारी भी एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से माँग में कमी आयी है, NSSO के डाटा के मुताबिक 2017-18 में पिछले 45 सालो में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर्ज़ की गयी है। बेरोजगारी बढ़ने की वज़ह से लोग घर पे बैठे हुये है, उनके पास काम करने को कुछ भी नहीं है जिसकी वज़ह से वो खर्चा कर नहीं सकते और फ़िर इसकी वज़ह से बाज़ार में ख़पत (Consumption) कम हो रहा है। निजी खपत' (Private Consumption) भारत की जीडीपी में 55-60% का योगदान देता है जिसमे भारी गिरावट दर्ज की गयी है। निजी अंतिम खपत व्यय (Private Final Consumption Expenditure, PFCE) 2019-20 की पहली तिमाही में 3.14% है जो की पिछली 17 तिमाहियों में सबसे कम दर्ज किया गया है, इस से साफ पता चलता है की भारत में माँग (Demand) की कमी आयी है। निवेश भी देश की जीडीपी को चलाने में अहम भूमिका निभाता है और इसे सकल स्थायी पूंजी निर्माण (Gross Fixed Capital Formation, GFCF) से मापा जा सकता है जो कि 2011 में 34.3% से गिरकर 2018 में 28.8% हो गया है और निजी क्षेत्र में भी GFCF, 2011 में 26.9% से गिरकर 2018 में 21.4% हो गया है।




अर्थव्यवस्था को सुचारु रूप से चलाये रखने के लिये सरकार का खर्च करते रहना भी बहुत जरूरी होता है जो की 2010-11 में जीडीपी का 15.4% से घटकर 2018-19 में जीडीपी का 12.2% हो गया है और सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार जो नये निवेश करती है उनमे भी कमी आयी है जबकि सरकार ने बजट प्रस्तुत करते हुये कहा था की वो 100 लाख करोड़ रूपए खर्च करेंगे लेकिन इसका अनुसरण करना शायद सरकार बाद में भूल गई।

भारतीय अर्थव्यवस्था का नीचे गिरने का कारण बैंको में लगातार बढ़ते हुये फ्रॉड भी है, जिससे लोगो का विश्वाश बैंकों पे कम होता जा रहा है। अकेले 2018-19 वित्तीय वर्ष में 71,500 करोड़ रूपए के बैंक में फ्रॉड हुये है। जीडीपी को मापने के 4 सबसे बड़े सूचक है- खपत, निवेश, सरकारी खर्च और निर्यात और अभी चारो सूचक गिरे हुये है, इनको ऊप्पर उठाने लिये भारत सरकार को ऐसे कदम उठाने होंगे जिनसे इनको मजबूती मिले। लेकिन कुछ भी कदम उठाने से पहले सरकार को ये मानना होगा की भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति अभी सही नहीं है क्यूंकि जब तक आप मानोगे ही नहीं तब तक आप कैसे सही कदम उठा सकते हो।



In these days, there has been a debate whether the Indian economy is on track or not. Some people are saying that everything is fine and some are saying that everything is not fine. Even our Prime Minister said in the 'Howdy Modi' event held in Houston, USA that everything is fine in India but just a few days ago, the Indian Economist Abhijit Banerjee, who won the Nobel Prize in the economy, feels that the condition of Indian economy is very bad. Now, we will try to discuss whether everything is right or not.

NSSO (National Sample Survey Organisation) tells about the GDP data in India and according to it, the first quarter (June quarter) of 2019-20 financial year (FY) has 5% GDP growth rate which is 3% less than the June quarter of 2018-19 FY. The GDP growth rate in the June quarter of 2018-19 FY was 8%. Many independent organisation suggested that Indian economy is going through a bad phase, therefore they cuts the projected GDP growth rate for the next financial year. The Reserve Bank of India has reduced the projected GDP growth rate from 6.9% to 6.1% for the 2019-20 financial year. The World Bank has also reduced the projected GDP growth rate from 7.5% to 6% for 2019-20. The IMF (International Monetary Fund) has also reduced the projected GDP growth rate from 7% to 6.1% for 2019-20. The ADB (Asian Development Bank) has also reduced the projected GDP growth rate from 7.2% to 6.5% for 2019-20. It is clear from these data that Indian economy is going through a bad phase.

Fastest growing economy is now going through a recession and one of the reason for it is a reduction in aggregate demand. There are many reasons for reduction in demand but 'demonetisation' is the first reason among them. With 86% currency out of the circulation, the economy suffered a lot and the biggest setback came in the unorganized sector (farmers, labourers, small traders, vegetable sellers, etc.) which accounted for 45% of India's GDP and 90-95% of the people work here. Most of the businesses in the unorganized sector are running in cash, and due to the lack of money in cash, merchants face difficulties in running the business. Due to the demonetisation, the income of the people was reduced because people had no money for expense and if the expenditure was not there then there was a reduction in demand and people also lost their jobs. Then the way in which GST (Goods and Services Tax) was implemented after demonetisation, it hurt the small businessmen badly because GST was so complicated that people could not understand it, they could not even fill GST by themselves. For this, they had to go to the CA (Chartered Accountant) and then after filling the GST, they did not get the refund on the right time, due to which there was a problem in running the business.


Unemployment is also a reason due to which demand has come down, according to NSSO data, unemployment is highest in 2017-18 FY for the last 45 years. Due to the increase in unemployment people are sitting at home, they have nothing to work which resulted in the decrease in the consumption in the market. Private Consumption contributes 55–60% to India's GDP, which has witnessed a steep decline. Private Final Consumption Expenditure, PFCE is 3.14% in the first quarter of 2019-20 which is the lowest recorded in the last 17 quarters, this clearly shows a shortage in demand in India. Investment also plays an important role in driving the GDP of the country and can be measured by Gross Fixed Capital Formation (GFCF) which has fallen from 34.3% in 2011 to 28.8% in 2018 and in private sector, GFCF has fallen from 26.9% in 2011 to 21.4% in 2018.


Government expenditure is also very important key to running an economy smoothly which has come down from 15.4% of GDP in 2010-11 to 12.2% of GDP in 2018-19 and the fresh investment projects by the government in the public sector also came down whereas government said in the budget that they will spend 100 lakh crore rupees in the infrastructure but the government may have forgotten to follow it later.


The reason for the downfall of the Indian economy is also the increasing frauds in banks, due to which the people have less faith in banks. In the 2018-19 financial year alone, bank fraud worth Rs 71,500 crore. The 4 biggest indicators of measuring GDP are- consumption, investment, government expenditure and exports and now all four indicators are falling, the Government of India will have to take steps to strengthen them. But before taking any action, the government will have to accept that the Indian economy is not well right now, as long as you don't accept then how can you take the right steps.

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