Monday, September 21, 2020

Reality Check of Reservation

"आरक्षण" यह शब्द सुनते ही भारतीय समाज में बहुत से लोगो को खुशी होती है और बहुत से दुःखी होते है। चाहे हम किसी भी आरक्षण की बाते करे, जैसे- जातिगत आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण हो या महिलाओं को दिया जाने वाला आरक्षण हो या शारीरिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण हो या मंदिरों, मेट्रो और राशन की दुकानों पर दिया जाने वाला आरक्षण हो। जहां तक मेरी समझ है आरक्षण से वही लोग खुश या समर्थन करते है जिन्हे आरक्षण मिल जाता है और वही लोग दुःखी या विरोध करते है जिन्हे आरक्षण नहीं मिलता, हां कुछ अपवाद हो सकते है और यह भी देखने में आता है कि जो आरक्षण विरोधी है, उन्हें आरक्षण दे दिया जाये तो वो भी खुश हो जाते है या आरक्षण का समर्थन करने लग जाते है और वो फ़िर आरक्षण विरोधी नहीं रहते है। इस ब्लॉग में हम सिर्फ़ जाति के आधार पर दिए गए आरक्षण पर तथ्यों के साथ चर्चा करेंगे।

                                 Image Credit: Amar Ujala   

भारत में आरक्षण जाति के आधार पर दिया गया क्योंकि भारत में जो भेदभाव और शोषण हुआ था वो सिर्फ़ और सिर्फ़ जाति के आधार पर ही हुआ था और हज़ारों सालों से होता आया था, तो जिस आधार पर निम्न वर्ग को हमेशा नीचा दिखाया गया, शोषण किया गया उसी को आधार मानकर उनको समाज में बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए आरक्षण दिया गया। यह ठीक उसी तरह है जैसे मान लीजिए अगर किसी छोटी हाइट वाले व्यक्तियों को 100 साल तक नौकरी देना बन्द कर दे तो जाहिर सी बात है छोटी हाइट वाले व्यक्ति निराश होंगे और वो बाकियो की तुलना में पिछड़ जायेंगे तो वो इसका विरोध करेंगे और समानता के अधिकार की आवाज़ उठायेगे और जब 100 साल बाद उन्हें समानता का अधिकार दिया जायेगा तब उन्हें इसके साथ कुछ विशेषाधिकार भी दिया जायेगा ताकि इतने सालो से उनके साथ जो अन्याय हो रहा था उसको ख़त्म कर के उन्हें सबके बराबर लाया जाएं और यह विशेषाधिकार हाइट के आधार पर ही दिया जायेगा क्योंकि हाइट के आधार पर ही उनका शोषण हुआ है और तब तक दिया जायेगा तब तक वो अन्य हाइट के लोगों की बराबरी ना कर ले। भारतीय संविधान के आर्टिकल 15 और 16 के तहत भारत सरकार को अनुमति देता है कि, जो वर्ग शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र से पिछड़े हुए है उनको विशेषाधिकार देकर उनको बाकियों के बराबर ला सकती है और इसे ही आरक्षण कहा गया। सर्वप्रथम आरक्षण SC (दलित) और ST (आदिवासी) वर्ग को ही दिया गया था लेकिन बाद में मंडल कमीशन रिपोर्ट की सिफ़ारिश पर OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) वर्ग को भी आरक्षण दिया गया। 

आरक्षण सिर्फ़ भारत में ही नहीं है बल्कि यह दुनिया के हरेक देश में है जहाँ किसी विशेष वर्ग, समुदाय या जाति के लोगो के साथ भेदभाव या शोषण हुआ है जिसकी वजह से यह लोग बाकियो की तुलना में पिछड़ गये या इन्हे आगे बढ़ने का मौका ही नहीं दिया गया था। अलग अलग देशो में आरक्षण को अलग अलग नाम दिये गये है जैसे अफरमेटिव ऐक्शन (Affirmative Action), पॉजिटिव एक्शन (Positive Action), कोटा सिस्टम (Quota System), इत्यादि। दुनियाभर में इसे एक ही नाम दिया गया है और वो है "अफरमेटिव ऐक्शन"। अफरमेटिव ऐक्शन का प्रयोग दुनिया के कई देश करते है जैसे भारत, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, चीन, इजराइल, इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका, ताइवान, डेनमार्क, फ़िनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे, रोमानिया, रूस, स्लोवाकिया, यूके, कनाडा, न्यूज़ीलैंड, ब्राज़ील, बांग्लादेश और पाकिस्तान।अमेरिका में नस्लीय रूप (Racial Discrimination) से भेदभाव होता है, काले रंग के लोगो के साथ भेदभाव होता है तो काले रंग के लोगो को बराबर का  प्रतिनिधित्व देने के लिए अफरमेटिव ऐक्शन का प्रयोग  जाता है। मलेशिया में 'भूमिपुत्र' समुदाय पिछड़ा हुआ है तो यहां इनको अन्य समुदायों के बराबर लाने के लिए विशेषाधिकार दिये गये। दक्षिण अफ्रीका में भी नस्लीय रूप से भेदभाव होता था इसलिए यहाँ भी काले रंग के लोगो को बराबर का प्रतिनिधितित्व देने के लिए अफरमेटिव ऐक्शन का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार अलग अलग देशो में पिछड़े हुए समुदाय को बराबरी का प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए अलग अलग प्रकार से विशेषाधिकार दिए गए है जिन्हे अफरमेटिव ऐक्शन कहते है। 

भारत में SC, ST और OBC को नौकरी के अवसरों में (सिर्फ़ सरकारी नौकरियों में) क्रमशः 15%, 7.5% और 27% आरक्षण दिया गया, जो कुल मिलाकर 49.5% होता है, शेष 50.5% गैर-आरक्षित रखा गया। भारत की जनसंख्या को अगर SC, ST, OBC और सामान्य  वर्गो के हिसाब से देखे तो हम पाते है कि भारत में SC और ST की आबादी देश की आबादी की (2011 की जनगणना के आधार पर) क्रमशः 16.6% और 8.6% है। भारत में OBC वर्ग की जनगणना नहीं कि जाती है जो की एक शर्मनाक बात है क्योंकि हम जिसे आरक्षण दे रहे है, हमे उसका पता ही नहीं है कि देश के कितनी प्रतिशत आबादी को हम आरक्षण दे रहे है। मंडल कमीशन जिसकी रिपोर्ट के मुताबिक OBC आरक्षण दिया गया था उसके मुताबिक OBC वर्ग की आबादी देश की आबादी की 52% थी। इस हिसाब से SC, ST और OBC की कुल मिलाकर आबादी देश की आबादी की 77.2% है और जो शेष आबादी यानी 22.8%, सामान्य वर्ग की आबादी है। हालाँकि देश के कई सामाजिक कार्यकर्ताओ के मुताबिक इस डाटा में संशोधन की जरुरत है और ख़ासकर के OBC वर्ग के डाटा में। कई सामाजिक कार्यकर्ताओ और स्वतंत्र संस्थाओ ने भी जाति के आधार पर डाटा दिया है जिनमे थोड़ा थोड़ा सा अंतर है मैं यहां योगेंद्र जी यादव का डाटा बताना चाहूंगा जिनके मुताबिक SC, ST और OBC वर्ग की आबादी देश की आबादी की क्रमशः 17%, 9% और 44% है, जो कुल मिलाकर देश की आबादी का 70% है और 30% आबादी सामान्य वर्ग की है जिसमे उच्च हिन्दू जातियां या ऊंची हिन्दू जातियां, कुछ मुस्लिम, कुछ सिख और कुछ क्रिश्चियन धर्म के लोग आते है। कई धर्म (मुस्लिम, सिख, क्रिश्चियन) है जो हिन्दू नहीं है और अलग अलग राज्यो में अलग अलग वर्गो में है, जैसे कुछ सिख SC में आते है और कुछ सामान्य वर्ग में, कुछ मुस्लिम OBC में आते है और कुछ सामान्य वर्ग में, कुछ क्रिश्चियन ST में आते है कुछ सामान्य वर्ग में। इस 30% सामान्य वर्ग की आबादी में लगभग 10% आबादी सिख, मुस्लिम और क्रिश्चियन की है और 20% आबादी उच्च हिन्दू जातियो या ऊंची हिंदू जातियो की है। 

उपरोक्त आंकड़ों से निष्कर्ष निकलता है कि देश की 70% आबादी को 49.5% आरक्षण दिया गया है और बाकी 50.5% गैर-आरक्षित श्रेणी में देश की 30% आबादी आती है और इसको अगर दूसरे नज़रिए से देखे जैसे आप जहां पर है या जहां पर आप काम करते है तो उस क्षेत्र में देश की 70% आबादी वाले लोगो की संख्या कितनी है और 30% आबादी वाले लोगो की संख्या कितनी है और 30% में भी सिर्फ़ ऊची हिन्दू जाति के लोगों को देखे तो ये सिर्फ़ 20% है तो किसी भी कार्यकारी स्थल पर 70% आबादी वाले ज्यादा दिखते है या 20% आबादी वाले ज्यादा दिखते है।  

आरक्षण, गरीबी हटाओ कार्यक्रम नहीं है बल्कि यह प्रतिनिधित्व की लड़ाई है। हम राष्ट्र निर्माण की बात करते है और राष्ट्र निर्माण तभी संभव है जब सभी समुदायों का समान प्रतिनिधित्व हो और समान प्रतिनिधित्व तभी होगा जब पिछड़े हुये समुदायों को विशेषाधिकार दिये जाये। हाल ही में 'ऑक्सफ़ैम इंडिया एनजीओ' और 'न्यूज़लौंडरी वेबसाइट' ने मिलकर' मीडिया क्षेत्र' में एक सर्वे (Who Tells Our Stories Matters) किया था जिसमे पता चला की मीडिया क्षेत्र में सिर्फ़ ऊंची हिंदू जातियों ने कब्ज़ा कर रखा है। सर्वे के मुताबिक, 121 न्यूज़ रूम के नेतृत्व के पदों (प्रधान संपादक, प्रबंध संपादक, कार्यकारी संपादक, ब्यूरो प्रमुख, इनपुट / आउटपुट संपादक) में से 106 पर ऊंची हिंदू जातियों के पत्रकारों ने कब्ज़ा कर रखा है और एक भी पत्रकार SC और ST वर्ग का नहीं है। सर्वे के मुताबिक ही, हर 4 एंकर में से 3 एंकर ऊँची जाति के है और न्यूज़ चैनलों में जो पैनेलिस्ट आते है उनमे 70% ऊँची हिंदू जातियों के होते है। दलितों और आदिवासियों के द्वारा हिंदी और अंग्रेजी समाचार पत्रों में  क्रमशः सिर्फ़ 10% और 5% ही लेख लिखे जाते है। जाति से संबंधित जो लेख हिंदी और अंग्रेजी समाचार पत्रों में लिखे जाते है वो आधे से ज्यादा ऊँची हिन्दू जातियों द्वारा लिखे जाते है। यह वही भारतीय मीडिया है जो आरक्षण के बारे में जनता को बताता है जिसमे ऊँची हिंदू जातियों द्वारा कब्ज़ा किया हुआ है। इससे मिलता जुलता हाल भारतीय न्यायपालिका (Judiciary of India) का है, भारतीय न्यायपालिका में SC, ST और OBC के कुल मिलाकर सिर्फ़ 38% जज है जबकि इनकी (SC,ST,OBC) आबादी देश की आबादी की 70% है। मोदी सरकार के 89 सचिवों में से सिर्फ़ 4 सचिव SC, ST और OBC वर्ग के है और मोदी कैबिनेट के 58 मंत्रियो में से 23 मंत्री SC, ST और OBC वर्ग के है, 3 मंत्री सिख और मुस्लिम धर्म के है जबकि ऊँची हिंदू जातियों के 32 मंत्री है।

NSSO (National Sample Survey Organisation, राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय) के मुताबिक भारत में ST, SC और OBC के क्रमशः 42.7%, 39% और 31.8% लोग पढ़े लिखे नहीं है। SC, ST और OBC के क्रमशः 0.60%, 0.80% और 1.5% लोग ही स्नातकोत्तर (Postgraduate) या इससे ऊपर की पढ़ाई किए है। भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था (Higher Education) में ST, SC, OBC, मुस्लिम धर्म और अन्य अल्पसंख्यकों के क्रमशः 1.99%, 6.95%, 21.92%, 3.09% और 3.2% अध्यापक/प्रोफेसर है जबकि ऊंची हिंदू जातियों के 62.85% अध्यापक/प्रोफेसर है।  इन आंकड़ों से निष्कर्ष निकलता है कि अभी भी भारतीय समाज में बुरी तरह से असमानताएं व्याप्त है। अक्सर कहा जाता है कि पढ़े लिखे नागरिक ही देश को प्रगतिशील या विकसित बनाते है लेकिन भारत में कुछ विशेष वर्ग के ही नागरिक पढ़े लिखे है। यह स्तिथि तो तब है जब आरक्षण है, अगर आरक्षण नहीं होता तो यह स्तिथि ओर भी बुरी होती। 

                                    Image Credit: The Wire

वर्ल्ड इनेक्वालिटी डाटाबेस (World Inequality Database) के मुताबिक SC, ST और OBC भारत की राष्ट्रीय औसत आय से क्रमशः 21%, 34% और 8% कम कमाते है जबकि ऊंची हिन्दू जातियां भारत की राष्ट्रीय औसत आय से 47% अधिक कमाती है। सामाजिक, आर्थिक और जातिय जनगणना के मुताबिक SC और ST में क्रमशः 54.71% और 35.65% भूमिहीन मजदूर है, SC और ST के क्रमशः  11.30% और 8.52% के पास ही दुपहिया वाहन है, SC और ST के क्रमशः 6.47% और 3.43% के पास फ्रिज है। SC और ST के क्रमशः 31.73% और 57.39% के पास किसी भी प्रकार का कोई फोन नहीं है। 68% दलितों के घर पेयजल नहीं आता है, 59% दलितों के पास बिजली कनेक्शन नहीं है और 77% दलितों के घरों में शौचालय नहीं है। OBC और सामान्य वर्ग के लिए अलग से सामाजिक, आर्थिक और जातिय जनगणना नहीं होती है जो कि बहुत ही गलत है और इसकी वजह से इनका अलग से डाटा उपलब्ध नहीं है लेकिन उपरोक्त आंकड़ों से निष्कर्ष निकलता है कि भारत में SC और ST आर्थिक स्थिति में भी काफ़ी पिछड़े हुए है, इनकी आय अन्य वर्गो की आय से काफ़ी ज्यादा कम है।

अक्सर आरक्षण विरोधी यह तर्क देते है कि आरक्षण का लाभ सिर्फ़ वही उठाते हैं जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं और आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता जो कि एक गलत तर्क है और यह नीचे दिए गए तथ्यों से सिद्ध हो जायेगा। NSSO के मुताबिक 1 एकड़ जमीन से मासिक आय ₹4152 और मासिक खर्चा ₹5401 होता है मतलब इनको ₹1249 का नुकसान होता है और जिनके पास 1 एकड़ जमीन होती है वो आर्थिक रूप से संपन्न नहीं होते हैं। 81% दलित जो सरकारी नौकरियों में है उनके पास 1.2 एकड़ जमीन से भी कम है। 68% दलित जो सरकारी नौकरियों में है वो बाहरवी से कम पढ़े है और जो बाहरवी से कम पढ़े होते हैं उनकी आर्थिक स्थिति सही नहीं होती हैं। केंद्रीय पब्लिक सर्विस में 20% दलित काम करते हैं, इनमें से 81% दलित सी या डी ग्रेड की नौकरियां करते हैं और सी या डी ग्रेड की नौकरियां भी वही करते हैं जिनके घर के आर्थिक स्थिति सही नहीं होती है। उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि आरक्षण का लाभ आरक्षित वर्ग के निचले तबकों को मिल रहा है लेकिन समाज के लोग आरक्षित वर्ग के कुछ ही संपन्न लोगों का उदाहरण देकर आरक्षण का विरोध करते हैं। 

यह भी तर्क दिया जाता है कि आरक्षण की व्यवस्था से नौकरी लगने से गुणवत्ता/उत्पादकता में कमी आती है लेकिन यह भी एक गलत धारणा है जो कुछ आरक्षण विरोधियों ने बना दी है जबकि वास्तविकता यह नहीं है। भारतीय रेलवे, जो भारत में सबसे ज्यादा नौकरियां देता है, उसपे एक शोध (डज अफरमेटिव ऐक्शन अफेक्ट प्रोडक्टिविटी इन द इंडियन रेलवे, Does Affirmative Action Affect Productivity In The Indian Railways)  हुआ था जिसके मुताबिक आरक्षण की व्यवस्था से लगने वाली नौकरियो की वजह से भारतीय रेलवे की गुणवत्ता/उत्पादकता (Productivity) में कमी नहीं आयी है और ना ही उत्पादकता वृद्धि दर (Productivity Growth) में कमी आयी है बल्कि कुछ शोध के परिणामों में उत्पादकता और उत्पादकता वृद्धि दर बढ़ी है। ऐसा इस लिए हुआ है कि अगर एक जगह काम करने वाले अलग अलग वर्गो से आते है तो विविधता (Diversity) बढ़ती है और विविधता बढ़ने से उत्पादकता बढ़ती है या बराबर ही रहती है लेकिन घटती नहीं है। 

इस लेख में प्रयोग किए गए आंकड़ों से निष्कर्ष निकलता है कि आरक्षण की भारत में जरूरत है क्योंकि अभी भी भारत में जाति के आधार पर भेदभाव होता है, NCRB (National Crime Records Bureau, राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 13000 केस जाति के आधार पर किए गए भेदभाव के है और यह तो वो है जो रजिस्टर हो जाते है बाकी कई केस तो रजिस्टर ही नहीं होते है। आरक्षण का मुख्य उद्देश्य ही आरक्षण को खत्म करना था, क्योंकि पहले पढ़ने लिखने का अधिकार सिर्फ़ कुछ विशेष वर्ग को ही होता था वो भी तो आरक्षण ही था और कुछ तर्क यह भी आते है कि आरक्षण सिर्फ़ 10 सालों के लिए ही था, जी हां 10 सालो के लिए ही था लेकिन वो सिर्फ़ राजनैतिक आरक्षण (चुनावों में दिया जाने वाला) था ना कि शिक्षा और रोजगार के अवसरों में दिया जाने वाला आरक्षण। इसलिए हमें आरक्षण को लेकर अफवाहें फैलाना बन्द करना होगा और सोचना होगा कि जो वर्ग हर क्षेत्र में (शिक्षा, मीडिया, न्यायपालिका, राजनीति) में पीछे है और आर्थिक रूप से भी कमज़र है उनको आगे बढ़ने का मौका दिया जाना चाहिए। अक्सर देश में बढ़ती बेरोजगारी का कारण आरक्षण को बता दिया जाता है लेकिन भारत में मात्र 2-3% सरकारी नौकरियां है और आरक्षण सिर्फ़ सरकारी नौकरियों में ही है इसलिए यह पूरी तरह से एक राजनैतिक कारण है, अपनी नाकामयाबियों को छिपाने के लिए नेताओं द्वारा ऐसा बयान दे दिया जाता है और प्रोफ़ेसर विवेक कुमार ने इसे समझाने के लिए कहा था कि जब भी हम इधर कि तरफ़ बस का इंतजार करते है तो हमें लगता है कि उधर के तरफ़ ज्यादा बसे आ रही है, ठीक ऐसा ही गैर आरक्षित वर्ग को लगता है कि उनका हक आरक्षित वर्ग ले रहा है जबकि ऐसा है नहीं। हमे यह पूछना चाहिए कि जाति के आधार पर भेदभाव होना कब बन्द होगा, ना कि यह की जाति के आधार पर आरक्षण कब ख़त्म होगा। जब समाज में जाति के आधार पर भेदभाव होना बन्द हो जायेगा, आरक्षण भी अपने आप खत्म हो जायेगा। ऐसा भी नहीं है कि आरक्षण में कमियां नहीं है, बेशक कमियां है और कई जगह दुरुपयोग भी किया जाता होगा लेकिन हमारे देश में ऐसा कौनसा नियम, कानून या पोलिसी है जिसमें कमियां या उनका दुरुपयोग नहीं होता। कई ऊंची जातियों के नागरिक भी आर्थिक रूप से कमज़ोर होंगे लेकिन वो आरक्षण की वजह से नहीं सरकार की कमज़ोर नीतियों कि वजह से आर्थिक रूप से कमज़ोर है और उन्हें सरकार से प्रश्न ना पूछना पड़े इसलिए सरकार अपनी गलतियों को छिपाकर सारा भार आरक्षण पर डाल देती है।

नीचे दिये वीडियो में बताया गया है कि कैसे आरक्षित वर्गों के नागरिको के साथ भेदभाव होता है:


                  Video Credit: NDTV India


स्रोत:

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Affirmative_action
  2. https://hindi.firstpost.com/special/reservation-is-in-many-countries-like-america-and-japan-ambedkar-and-nehru-benifits-of-reservation-and-cast-system-of-india-71632.html
  3. https://theconversation.com/affirmative-action-around-the-world-82190
  4. https://en.wikipedia.org/wiki/Quotaism
  5. http://dspace.bracu.ac.bd/bitstream/handle/10361/2085/Quota%20System%20in%20Bangladesh%20Civil%20Service%20An.pdf?sequence=1
  6. https://en.wikipedia.org/wiki/Bumiputera_(Malaysia)
  7. https://en.wikipedia.org/wiki/Quota_system_in_Pakistan
  8. https://en.wikipedia.org/wiki/Reservation_in_India
  9. https://scroll.in/article/932660/in-charts-indias-newsrooms-are-dominated-by-the-upper-castes-and-that-reflects-what-media-covers
  10. https://www.oxfamindia.org/sites/default/files/2019-08/Oxfam%20NewsLaundry%20Report_For%20Media%20use.pdf
  11. https://thewire.in/law/annual-diversity-statistics-judiciary
  12. https://theprint.in/india/governance/of-89-secretaries-in-modi-govt-there-are-just-3-sts-1-dalit-and-no-obcs/271543/
  13. https://timesofindia.indiatimes.com/india/union-cabinet-2019-pm-tries-to-accommodate-most-castes/articleshow/69589639.cms
  14. https://www.livemint.com/Opinion/vq7cTOUmxzDSB4x5QwguVL/Three-charts-that-show-why-reservations-are-desirable.html
  15. https://www.livemint.com/Opinion/9vRG6mUBIVMUblcxIvJqgM/Why-Bihar-is-extra-sensitive-to-reservation-politics.html
  16. https://thewire.in/education/higher-education-is-still-a-bar-too-high-for-muslims-dalits
  17. https://www.livemint.com/Opinion/myrJLTnIfiNVSaJF8ovdRJ/Locating-caste-in-Indias-farm-economy.html
  18. https://www.business-standard.com/article/current-affairs/income-inequality-in-india-top-10-upper-caste-households-own-60-wealth-119011400105_1.html
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